पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२५५

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२३८ तसव्वुफ अथवा सूफीमत अर्थ इब्रानी भाषा में 'देवता' होता है । छांदोग्य में एक शब्द 'तजलन है जिसका 'तजल्ली' से साम्य है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मसीह के बहुत पहले से उन प्रान्तों से भारत का संबंध रहा है जिनमें तसव्वुफ का उदय तथा विकास हुा । परंतु इस संबंध से अभी स्पष्ट न हो सका कि भारत की धर्म-भावना का प्रसार भी उनमें हो गया था। अतएव कुछ इस बात पर भी विचार कर लेना चाहिए कि उक्त देशों में कभी भार. नीयं धर्म का प्रचार था अथवा नहीं। सो संघ की स्थापना हो जाने से बौद्धों के लिये यह सुगम हो गया था कि वे भारत के बाहर अन्य देशों में भी सद्धर्म का प्रचार करें। महाराज अशोक के गिरिनार तथा शाहबाजगढ़ी के शिलालेखों से स्पष्ट अवगत होता है कि अतियोक नामक यवन राजा के राज्य तथा निकटवर्ती प्रान्तों में महाराज ने ओषधि तथा प्रचारक भिन्नु भेजे थे। कहना न होगा कि इस अंतियोक का शासन सीरिया तथा पश्चिमीय एशिया पर था । अशोक की इस 'धर्म-विजय' का फल यह हुआ कि कट्टर यहूदियों में भी कोमलता या गई और उनमें भी निवृत्तिमार्ग को स्थान मिला । लोकमान्य तिलक का कथन है- "अशोक के शिला लेख में यह बात लिखी है कि यह दी लोगों के तथा आस- पास के देशों के यूनानी राजा एंटियोकस से उसने संधि की थी।.........इसके सिवा प्लूटार्क ने साफ साफ लिखा है कि ईसा के समय में हिंदुस्तान का एक यती लाल समुद्र के किनारे एलेक्जेंडिया के आस प स के प्रदेशों में प्रतिवर्ष श्राया करता था ! तात्पर्य, इस विषय में अब कोई शंका नहीं रह गई है कि ईसा से दो तीन सौ वर्ष पहले ही यहूदियों के देश में बौद्ध यतियों का प्रवेश होने लगा था; और जब यह संबध सिद्ध हो गया, तब यह बात सहज ही निष्पन्न हो जाती है कि यहुदी लोगों में संन्यास प्रधान एसी पंथ का और फिर आगे चलकर संन्यासयुक्त भक्ति प्रधान ईसाई धर्म का प्रादुर्भाव होने के लिए बौद्ध-धर्म ही विशेष कारण हुआ होगा।" (१) छा० उ०, नृ० अ० १४.१ । (२) गीता रहस्य पं० मु. पृ० ५९२ ।