पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२५६

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परिशिष्ट २ २३९ गार्ड महोदय ने एसीन-संप्रदाय की पूरी पूरी छानबीन कर यह घोषित किया है कि एसीन-संप्रदाय वा यदि तीन चौथाई बौद्ध मत का प्रसाद है तो एक चौथाई यहूदियों का । श्री स्प्रिंगेट को भी इसमें सन्देह नहीं है। उनको तो 'पश्चिम' में बौद्ध मत का पूरा प्रसार दिखाई देता है। कहने की बात नहीं कि मसीह के (यूहन्ना), जिन्हें मारगोलियथ साहव सूफी समझते हैं, वास्तव में इसी संप्रदाय के भिन्तु थे । ईसा के प्रवास के संबंध में लोकमान्य तिलक का निष्कर्ष है- "बाइबिल में इस बात का कहीं भी वर्णन नहीं मिलता कि ईसा अपनी आयु के बारह वर्ष से लेकर तीस वर्ष की आयु तक क्या करता था और कहाँ था । इससे प्रगट है कि उसने अपना यह समय ज्ञानार्जन, धर्म-चिंतन और प्रवास में बिताया होगा। अतएव विश्वास-पूर्वक कौन कह सकता है कि आयु के इस भाग में उसका बौद्ध भिन्तुकों से प्रत्यक्ष या पर्याय से कुछ संबंध हुआ ही न होगा ? क्योंकि उस समय यतियों का दौरदौरा यूनान तक हो चुका था । नेपाल के एक बौद्धमठ में स्पष्ट वर्णन है कि उस समय ईसा हिन्दुस्तान में आया था और वहाँ उसे बौद्ध-धर्म का ज्ञान प्राप्त हुआ।" ईसामसीह भारत भले ही न आए हो किन्तु उन पर भारत का प्रभाव प्रत्यक्ष है। हापकिस महोदय का मत है कि ईसा पर ार्य प्रभाव स्पष्ट है पर वह भारत के अतिरिक्त ईरान में भी पड़ सकता है। यही सही; किन्तु ईरान में भी तो ३ (१) वाज जीजज इफ्लूएंस्ड थाई वुद्धीम, पृ० ११४ । (२) सेक्रेट सेक्टस आव सीरिया एंड दी लेबनान, पृ० ६५ । (३) गोता रहस्य, पृ० ५६३ । (४) हापकिस महोदय का यह भी कथन है कि चतुर्थ इंजील और भगवद्गीता में इतना साम्य है कि वे एक दूसरे से प्रभावित अवश्य है। हमारी समझ में प्राचीनता के नाते इंजील पर गीता का प्रभाव अवश्यंभावी है। (दी रेलिजंस प्राव इंडिया, पृ. ३८१, ४२१, ५२५, ५६७ श्रादि ।) (५) साइक्लोपीडिया श्राव रेलिजंस पंड एथिक्स ।