पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२५९

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२४२ तसव्वुफ अथवा सूफीमत है। कहा जाता है कि प्रारंभ में सीरिया में ही सूफी फीर मिलते हैं। ठीक है। पर इससे यह कहाँ सिद्ध हो पाता है कि सीरिया में भारतीय संस्कार थे ही नहीं । यदि आरंभ के सूफी तपखी और एकान्तप्रिय थे तो प्रारंभ के भिन्नु भी तो ऐसे ही थे। सच पूछिये तो यह इस बात का पक्का प्रमाण है कि सीरे मा के बौद्ध भिक्षु ने ही प्रारंभ में फकीरी का चोला धारण किया और शामी मत को खोकार कर अपनी प्राण-रक्षा करते हुए परम पद के भागी बने । इतिहास से यह बात सिद्ध है कि सीरिया में भारतीय संस्कार काम कर रहे थे और संकट के समय सारिया के सपूत भागकर भारत आए थे। सीरिया के फकीरों में प्रेम का अभाव था तो प्रेम का प्रसार सर्व प्रथम बसरा के सूफियों, विशेषतः हसन और राबिया में हुआ। कहना न होगा कि अरब बसरा-प्रांत को हिंद का अंग समझते थे। यहां भी भारत का प्रभाव प्रकट है। किंतु तसव्वुफ पर ज्या ज्यों यूनानी एवं मसीही प्रभावों का खंडन होता गया त्यो त्यो लोग कुरान को तसव्वुफ का स्रोत मानने लगे, और इस बात को भूल ही गये कि कुरान पर भी अन्य मतों का प्रभाव पड़ सकता है । स्वाभाविक तो यह था कि कुरान का इस दृष्टि से परितः परिशीलन किया जाता और स्पष्ट रूप में देख लिया जाता कि व्यापारी मुहम्मद की विचार-धारा में कितना भारतीय अथवा अशामी है। परंतु धर्म-संकट अथवा किसी अन्य कारण से अब तक ऐसा नहीं किया गया । हर्ष की बात है कि सैयद सुलैमान साहब को कुरान पाक में तीन शब्द हिंदी के मिलते हैं और मौलाना मुहम्मद अली को कुरान में ईसा मसीह की समाधि' का संकेत दिखाई देता है जो उनकी दृष्टि में कश्मीर में है। दाराशिकोह का तो कहना ही है कि कुरान में (१) क्रिश्चियन मिल्टीसीजम, पृ० १०४ । (२) ए कम्पेरेटिव ग्रैमर भाव दी वेडियन लैंग्युएज, पृ० १९ । (३) हिस्टरी आव दी पारसीज, प्र. भा०, पृ० २७ । (४) अरन और भारत के संबंध, पृ० ६१ । (५) दी होली कुरान, पृ० ६८६-७ १ (६) मजमा-उल-बहरैन, पृ० १३ ॥