पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२६२

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परिशिष्ट २ २४५ चौद्ध थे और अरबों का सत्कार करते थे। प्रकारान्तर से वीर-कौल भारत के पतन के कारण हुए 1 फरिश्ता के कथनानुसार सन् ४० हि० में सरन द्वीप का राजा मुसलमान हो गया था । फरिश्ता के प्रमाण का पता नहीं। पर बुजुर्ग बिन शहरयार लिखता है कि जब सरनद्वीप तथा आमपास के लोगों को मुहम्मद साहब का हाल मालूम हुआ तब एक समझदार आदमी को पता लगाने के लिये अरब भेजा गया। उस समय हजरत उमर का जमाना था। वह आदमी रास्ते में मर गया। पर उसका दूसरा साथी सरनद्वीप पहुँच गया। उससे उमर महोदय की रहन-सहन सुनकर लोग मुसलमानों के साथ और भी अच्छा व्यवहार करने लगे। जो हो उमर ने स्वतः हिंद से बुतपरस्त देश पर आक्रमण नहीं किया ; किंतु उन्हीं के शासन में थाना ( बंबई के पास ) अरबों के अधिकार में आ गया । उचित अवसर पाकर अरबों ने सिन्ध पर अपना सिक्का जमा लिया । सिन्ध के मुसलमान मका जाने लगे और धीरे धीरे मुल्तान तसव्वुफ का केन्द्र हो गया। अरब और हिंद के सयोग से बेसर नाम की एक संकर जाति उत्पन्न हो गई। इस प्रकार भारत और अरब की घनिष्टता और भी बढ़ गई और सूफी वेदांत से सीधे प्रभावित होने लगे। उमय्यावंश के पतन से ईरान का सौभाग्य जगा । संस्कृति के विचार से अरब ईरान का दास बन गया । अब्बासियों की कृपा से बगदाद विद्या का केन्द्र बना। यूनान तथा भारत के पंडित आमंत्रित हुए। अनेक ग्रंथों के अनुवाद किए गए। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस विद्या व्यायाम की मूल प्रेरणा 'वरामका' लोगों (१) अरब व हिन्द के तालकात, पृ० १२ | (२) अरब व हिन्द के तालुकात, पृ. २६२ । (३) बेमर और सोमरा जातियों पर विचार करने से स्पष्ट हो जाता है कि अरब और भारतीय कितने हिलमिला गये थे । सोमरा अरमों में एक हिंदू कबोला था और बेसर ( खच्चर ) एक संकर जाति थी। देवल स्मृति में जो शुद्धि की चर्चा है उसका संकेत शायद इसी ओर है। इस प्रसंग में नक्सारी को संधि भी विचारणीय है ।