पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२६४

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परिशिष्ट २ २४७ संबंध है । इसलाम में मोज पास पैगंबर माने आते हैं और बुत परम प्रियतम का प्रतीक। सूफी खिज्र को अपना पथप्रदर्शक मानते ही हैं। यसरा एवं बगदाद को सूफियों का केन्द्र समझ कर तथा ईरान में तसव्वुफ की प्रधानता देखकर समीक्षकों ने तसव्वुफ को आर्य-संस्कारों का अभ्युत्थान घोषित किया और आर्यदर्शन के अभिज्ञों ने इसे स्त्रोकार भी कर लिया। परतु ब्राउन, निकल्सन प्रमृति फारसी तथा अरबी के पंडितों ने इसका विरोध किया और जहाँ तक उनसे बन पड़ा ईरान और भारत के प्रभावों को कम करने की भरपूर चेष्टा की। उनके अनेक मनमाने प्रमायों को निर्मूल सिद्ध करने के उपरान्त अब हमें देखना यह है कि मिस्त्र के जुलनून तथा स्पेन के अरबी नामक दूर के सूफी प्राचार्यों की साक्षी पर क्या सचमुच आर्य प्रभाव खंडित हो जाता है। सौभाग्य से हमारे पास कुछ ऐसे प्रमाण प्रस्तुत हैं जो उनके इस अमोघ अस्त्र को भी निष्फल करने में समर्थ हैं । सिकंदरिया में भारतीय भाव किस प्रकार काम कर रहे थे इसको हम पहले ही देख चुके हैं। यहां यह स्पष्ट करना है कि जूलनून भी उनसे प्रभावित हुआ था। प्लोटिनस की भाँति ही जूलनून ने भी ईरान की यात्रा की और बगदाद को अपना अड्डा बनाया । परिणाम यह हुआ कि आर्य-संस्कारों के प्रचारक के कारण उसे 'जिंदीक' और 'मलामती' की उपाधि तथा अंत में प्राण-दंड मिला। अस्तु, यहाँ भी निर्विवाद कहा जा जा सकता है कि जूलनून के आधार पर भी तसव्वुफ पर भारतीय प्रभाव सिद्ध है। जूलनून के विचार बहुत कुछ अनिशलामी अथवा भारतीय हैं जो ईरान की यात्रा (बगदाद) में हाथ लगे थे और भागे चलकर उसके प्राण-दंड के कारण भी हुए। दूर होते हुए भी मित्र भारत से निकट है, पर स्पेन तो भारत से सचमुच बहुत ही दूर है। अतएव यह किसी के मन में प्रा नहीं सकता कि कोई स्पेन का वासी भी भारतीय भावों से अभिषित हो सकता था। निदान कहा गया है कि अरबी भारतीय प्रभाव से सर्वथा मुक्त है। दर्शन की दृष्टि से भरपी जितना भारतीय वेदान्त का ऋणी है उतना अन्य कोई सूफी प्राचार्य नहीं । कारण स्पष्ट है। हल्लाज के समय (१) एसाइलोपीडिया भाव इसलाम, प्रथम भाग, पृ० ६६४ ।