पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२७

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत संस्कारों पर ध्यान नहीं देते । तसव्वुफ, नव-अफलातूनी-मत और वेदांत में चिंतन की एकता होने पर भी उनके प्रसार में बड़ी विभिन्नता है जो उनके प्रचारकों में देश-काल की भिन्नता के कारण आ गई है। निदान, सूफीमत के उद्भव के लिये हमें शामी जातियों की आदिम प्रवृत्तियों को ही हूँढना है अर्थात् उन्हीं में उसके आदि-स्रोत का पता लगाना है, अन्यत्र कदापि नहीं । हम पहले ही कह चुके हैं कि वाल, कादेश, ईस्तर प्रकृति देवी-देवताओं के वियोगी शामी जातियों मे विरह जगा रहे थे। पर वास्तव में इनमें अधिकांश कामुक थे जो मंदिरों के अखाड़ों में अपनी काम-कला दिखाते तथा नर-नारियों को न करते थे। देवदास तथा देवदामियाँ कामुकों के शिकार हो गए विरले ही व्यक्ति अपने व्रत के पालन में सफल हो रहे थे। वस्तुतः मंदिर व्यभिचार के अहे बन गए थे। समाज का बल-वीर्य प्रतिदिन नष्ट होता जा रहा था। अतएव यहोवा के कहर उपासको ने मंदिरों के पवित्र व्यभिचार' का घोर विरोध किया। यहोवा एक रुद्र-सेनानी था। उसने नबियों से स्पष्ट कह दिया कि यदि बनी-इसरा- एल उसकी छत्रछाया में अन्य देवी-देवताओं को नष्ट-भ्रष्ट कर एकदम नहीं आ जाते तो उनका विनाश निश्चित है। फिर क्या था, देखते ही देखते यहोवा का अातंक छा गया और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर नष्ट कर दिए गए। उनके प्रणयी भक्त या तो यहोवा के संघ में भर्ती हो गए या प्रच्छन्न रूप से रति-व्यापार करते रहे । कर्मशील नबियों के घोर कांडों का प्रभाव सत्वशील प्राणियों पर अच्छा ही पड़ा । देवदासियाँ परदे में बाहर जाने लगी और कामवासना का भाव मंद पड़ा । प्रेमियों के प्रत्यक्ष प्रियतम ज्यों ज्यों परोक्ष होने लगे त्यो त्यों उनका विरह बढ़ता और प्रेम खरा उतरता गया और अंत में उसने इस दबाव के कारण परम (१) यहोवा के संबंध में लोकमान्य तिलक वा मत है शिवह वैदिक 'यह' का रूपांतर है। (२) यरमियाह २६. ७ १६ । राजाओं की पहली पुस्तक १४.२४:१५.२२ । अमूम ११.७। हसीम ४.१४ ।