पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२८

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उद्भव प्रेम का रूप धारण कर लिया। उपस्थ मे जो संभोग की प्रवृत्ति थी वह इस उपासना में भी बनी रही और सूफी वस्ल के लिए सदा तरसते रहे । सूफियों के प्रेम के प्रसंग में जो कुछ निवेदन किया गया है उसकी पुष्टि में मीरों और आंदाल के प्रेम भी प्रमागए हैं। मोरा बचपन में अपनी माँ से सुन चुकी थी कि गिरधर गोपाल की मूर्ति से उनका प्राय होगा । फलतः उसे गिरधर गोपाल के प्रेम में 'लोकलाज' खोनी पड़ी और संतमत में आ जाने के कारण कुछ अधिक स्वच्छंद होना पड़ा। आंदान संभवतः देवदासी थी। वह माधव मूर्ति पर अासत्ता थी और स्वयं कृष्ण से प्रणय चाहती थी। कृष्ण की मूर्ति में भगवान का व्यापक अमूर्त रूप भी विराजमान था । वास्तव में वही उसका आलंबन था cा जाता है कि अंत में उसी में वह सना भी गई। उसके प्रणय को कृष्ण न खीकार किया। मसीह की कुमारी दुनहिनों के प्रेम में भी यही बात है । यही कारण है कि सूफी साफ-साफ कह देते है कि इश्क मजाजी इश्क हकीकी की सीढ़ी है और उसी के द्वारा इंसान खुदी को मिटा खुदा बन जाता है। सूफियों का प्रेम आज भी मूर्त से अमून की ओर जाता है; वे यों ही अमूर्त की तान नहीं छेड़ते । हाँ, इतना अवश्य करते हैं कि अल्लाह को अमूर्त ही रहने देते हैं। निदान, हम देखते हैं कि वास्तव में सूफियों के प्रेम का उदय उक्त देवदास एवं देवदासियों में हुआ और कर्मकांडी नबियों के घोर विरोध के कारण उसको परम प्रेम की पदवी मिली। नबियों के घोर विरोध का तात्पर्य यह नहीं है कि किसी नबी में मादन-भाव के प्रति अनुराग ही नहीं रह गया। शामी धर्मग्रंथों में न जाने कितने स्थल ऐसे हैं जिनमें मादन-भाव की पूरी प्रतिष्ठा है। मादन-भाव के संबंध में अधिक न कह हमें फेवल इतना कह देना है कि इलहाम के विधाता वे नबी ही थे जो शामियों में नबी- संतान के नाम से ख्यात थे और विशेष-विशेष अवसरों पर किसी देवता के चढ़ (१) स्टडीज इन टामिल लिटरेचर, पृ० ११३ । (२) ए हिस्टरी श्राव हेब सिविलीनोशन, पृ० ३६१; इसराएल पृ० ४४४-६,