पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२९

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत जाने से अभुआते तथा खेलते थे। उनका दावा था कि देवता उनके सिर पर श्राते थे। वे भविष्य के मंगल के लिए कभी कभी कुछ निर्देश भी कर देते थे। कभी कभी तो उनको इदेव का प्रत्यक्ष दर्शन मिल जाता था और उसकी आज्ञा उन्हें स्पष्ट सुनाई पड़ती थी। जब कभी किसी देव-स्थान या विशेष उत्सव में उन्न पर देवता पाता था तब जो कुछ उनके मुंह से निकलता था वह उस देवता का आदेश समझा जाता था। उनकी भावभंगियाँ देवता की भावभंगियों होती थीं। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह इलहाम ही उनको सामान्य जनता से अलग करता था, और दर्शकों के हृदय में उनको देवता की कृपा का पात्र समझने की प्रेरणा करता था। जिन कर्मकांडी नबियों ने मादन-भाव का अनुमोदन नहीं किया, प्रत्युतः 'पबित्र व्यभिचार' तथा अन्य देवी-देवताओं का विध्वंस कर सेनानी यहोवा की छत्र- च्छाया में उसकी एकाकी सत्ता की घोषणा की, उनकी भी इलहाम पर पूरी आस्था रही । इलहाम के आधार पर ही उनका मत खड़ा रहा। सूफियों ने इलहाम को कभी नहीं छोड़ा। उनके मत में इलहाम पर सब का अधिकार है। रसूलों के लिये सूफ़ीमत में 'वी' का विधान है और जन-सामान्य के लिए इलद्दाम का। इलहाम के सम्यक् संपादन के लिए कुछ साधन भी अवश्य होते हैं। सच तो यह है कि कुछ मादक द्रव्यों के सेवन से मनुष्य को चित्तवृत्ति में जो विलक्षण सुखद परिवर्तन आ जाता है, प्रायः उसी को प्रारंभ-काल में लोग देवता का प्रसाद समझते थे। उत्तेजक द्रव्यों के सेवन का प्रधान कारण प्रानंद की वह उमंग ही है जिसमें प्राणी संसार की झंझटों से मुक्त हो, कुछ काल के लिए, आनंदधन और सम्राट बन भाता है । मादक द्रव्यों का प्रयोग साधु-संत व्यर्थ ही नहीं करते, उनके सेवन से दी रेलीजन आव दी हेम ज़ पृ० ११६, १७१; एशियानिक एलीमेंट इन ग्रीक सिविलौजेशन पृ० ११२ । (१) समूएल पहली, १०.११,१२ ; राजाओं की पहली पुस्तक १२.१८-१९, १८.४२, राजाओं की दूसरी पुस्तक २.१५ ।