पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उद्भव था । कभी कभी किसी जिन या प्रेत से भी उसे सहायता मिल जाती थी । संक्षेप में, वह एक ज्योतिषी के रूप में माना जाता था। उसमें सूफियों का नजूम था। कभी कभी उसको पुजारी का काम भी करना पड़ता था। समूएल इसके लिए ख्यात थे। मूसा भी यहोवा के पुजारी थे। प्रायः लोग कह बैठते हैं कि पीर परस्ती या समाधि-पूजा सूफियों में भारत के संसर्ग से आई । जो लोग शामी जातियों के इतिहास से सर्वथा अनभिज्ञ हैं एवं मानव- स्वभाव से भी भली भांति परिचित नहीं हैं उनकी बात जाने दीजिए। हम अाप तो जानते हैं कि मुफियों की बत्नी-पूजा अति प्राचीन है। यहोवा के कहर कर्मकांडी कर उपासकों के प्रताप से बाल आदि प्राचीन देवताओं की प्रतिष्ठा नत्र हो गई किंतु उनका प्रभाव वरावर काम करता रहा । यहोवा की एकाकी सत्ता का विधान कर उसके फौजी उपासकों ने जिस शासन का अनुष्ठान किया वह संकीर्ण एवं इतना कठोर था कि उसमें हृदय का समुचित निवाह न हो सका। जिस बाल को नष्ट कर यहोवा की प्रतिष्ठा खड़ी हुई उसके कतिपय गुणों का आरोप यद्यपि उसमें हो गया तथापि उससे जनता की तृप्ति न हुई। उसने 'वली' के रूप में बाल की आराधना की । फरिश्ते भी वास्तव में उन्हीं देवी-देवताओं के रूपांतर हैं जिनका नाश यहोवा अथवा अल्लाह के क्रूर भक्तों ने कर दिया था और जो मानव-स्वभाव की रक्षा के लिए फिर दूसरे रूप में प्रतिष्ठित हो गए। प्राचीन काल से ही यह धारणा चली अाती है कि मरण के उपरांत भी जीवन रहता है। शव को मिट्टी कहकर उसका तिरस्कार नहीं किया जाता, प्रत्युत विधि-विधानों के साथ उसको दफनाया जाता है । वह उसी कब्र में पड़ा पड़ा दुःख-सुख भोगता और अपने उपासकों की देख-रेख करता है । स्वयं मुहम्मद साहब कव के इस जीवन के कायल थे। शामियों की तो यहाँ तक धारणा थी कि शवे अपने वाहकों को मार्ग बताता है। बात यह है कि (१) समूएल पहली, ६.१६; रेलिजन भाव दी हेज़, पृ० ७५ । (२) राजाओं की पहली पुस्तक, २-६,६ उत्सत्ति, ३७.३५ । (३) इसराएल, पृ. ४२७ ॥