पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/३४

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एक और तो नबियों का यह उल्लास काम कर रहा था और दूसरी और से यहोवा के कट्टर सिपाहियों का विरोध चल रहा था। इससे हुआ यह कि विरोध एवं विवंस के कारण बाल, कादेश, ईस्तर प्रभृति देवी-देवताओं की मर्यादा भंग हो गई और उनके विवाहित व्यक्तियों को, या तो उन पर अश्रद्धा हो जाने के कारण, उनको तिलांजलि दे, यहोवा के संघ मे भरती होना पड़ा या उनके वियोग में, उनकी अमूर्त सता का, मूर्त के आधार पर, विरह जगाना पड़ा। शामी जातियों में मूर्तियों के चुंबन, आलिंगन आदि की जो व्यवस्था थी वह मूर्तियों के साथ प्रत्यक्ष रूप में जो नष्ट हो गई, पर परोक्ष रूप से वही अाज तक सूफियों के बोसे और वस्ल में विराजमान है। आज भी मका के संग-असद के चुंबन तथा हज के अन्य विधानों में उसकी झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उपर्युक्त समीक्षण के सिंहावलोकन में हम भली भाँति कह सकते हैं कि सूफीमत के सर्वस्व मादन-भाव का मूल स्रोत वही गुह्य मंडली है जिसमें कहीं मुरा-सेवन हो रहा है, कहीं राग आलापा जा रहा है, कहीं उछल-कूद मची है, कहीं कोई तान छिको है, कहीं गला फाड़ा जा रहा है, कहीं स्वाँग रचा जा रहा है, कहीं हाल आ रहा है, कहीं इनहाम हो रहा है, कहीं झाड़-फेंक मची है, कहीं करामत दिखाई जा रही है, कहीं कुछ हो रहा है, कहीं कुछ। कहीं कोई किसी हाल में बेहाल है तो कहीं कोई किसी मौज में मन। संक्षेप में सर्वत्र उन्ही क्रिया-कलापों का सत्कार हो रहा है जो आजकल की दरवेश-मंडली में प्रतिष्टित हैं और जिनके व्याकरण में सूफी आज भी मस्त हैं 1 हाँ तो उक्त नबियों की धाक तब तक जमी रही, उनका रंग तब तक चोखा रहा, जब तक यहोवा के कहर सिपाही जोर में न आए। यहोवा की पूरी प्रतिष्ठा स्थापित हो जाने पर भी उनका प्रभाव काम करता रहा। शाऊल सा प्रतिष्ठित व्यक्ति भी उनके चक्कर में आ गया । इलियाह और एलीशा भी उनसे प्रभावित हो गए। एलीशा के समय में तो उनका संघ स्थापित हो गया था और पवित्र नगरों में प्रायः उनके मठ भी बन गए थे। परंतु यहोवा के धुरीण सेवकों को संतोष न हुआ । २