पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४१

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२४ तसव्वुफ अथवा सूफीमत के गुरु यूहन्ना एक एसीन थे । एसीन संप्रदाय के विषय में एक समीक्षक का निष्कर्ष है कि एसीनों का यदि एक अंश शामी है तो तीन अंश बौद्ध । निवृत्ति-प्रधान एसीनों से मसीह को संसार से अलग रहने की शिक्षा मिलो। वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे और विरति पक्ष को दृढ़ करते रहे। उनका हृदय मूसा से कहीं अधिक उदार और कोमल था । अतएव उनकी भक्ति-भावना में परमपिता की प्रतिष्ठा हुई, सेनानी यहोवा की नहीं। जिस करुणा और जिस मैत्री को लेकर मसीह आगे बढ़े उनमें हृदय की उदात्त वृत्तियों का पूरा प्रबंध था। पर उनके उपरांत ही उनके उपासकों की दृष्टि संकीर्ण हो गई ; और मसीही संघ में पौलुस और यूहन्ना के मत चल पड़े ! पौलुस का कहना था कि स्वयं अलोकिक अथवा दिव्य मसीह ने उसे दीक्षा दी थी। फिर क्या था, उसके संदेश चारों ओर जाने लगे। वह मसीह का कटर खलीफा बन गया । यद्यपि वह मसीही संध का उद्भट पंडित और प्रचारक था, स्वयं ब्रह्मचारी और प्रणय का विरोधी था तथापि उसने विवाह का रूपक ग्रहण किया । संदेश है-"तुम (रोमक) भी अन्य से विवाहित हो सको, जो मृतक से जी उठा है।" स्पष्टतः पौलुस के इस कथन में उपास्य और उपासक के बीच में पति-पत्नी का संबंध है । पौलुस के अन्य संदेशों से पता चलता है कि उस समय नबियों की प्राचीन परंपरा कायम थो। पौत्तुस के उपरांत यूहन्ना ने मसीह को जो रूप दिया वह दार्शनिक तथा बहुत कुछ अ-शामी है। उसका प्रभाव शामी मतों पर इतना गहन पड़ा कि उसकी मीमांसा यहाँ नहीं हो सकती। उसके प्रज्ञात्मक स्वरूप पर विवाद न कर हमें स्पष्ट कह देना है कि उसमें भी मादन-भाव की झलक है। उसने पर- मेश्वर को प्रेमरूप तो सिद्ध किया ही ; एक स्थल पर मसीह को दुलहा तथा उनके भक्तों को दुलहिन बनने का संकेत भी कर दिया। हो सकता है कि पौलुस तथा उसका (१) वाज़ जीज़ज़ इनफ्लूएंस्ड वाई बुद्धिश्म, १० ११४ । (२) कुरिन्धियों के नाम पहली पत्री, १४.३७; ११.३; इफेसियों के नाम पत्री, ५.२२-२३,२५ : क्रिश्चियन मिस्टीसिम, पृ. १७२ । (३) यूहन्ना, ३.२६ ।