पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४२

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विकास युहन्ना पर रोम तथा यूनान की गुहा टोलियों का भी प्रभाव पड़ा हो और अफलातून के प्रेम ने भी कुछ कर दिखाया हो । अफलातून ने' जिस प्रेम का निरूपण किया था वह उसकी वासना और चिंतन का परिगाम था। यूनानियों अथवा आर्य जातियों में बुद्धि की उपासना थी। शामियों की तरह आर्य बुद्धि को पाप की जननी नहीं समझते थे। फलतः अफलातून ने जिस प्रेम का प्रवचन किया उसका प्रसार शीघ्र ही शामी संघ में हो गया। जिस भाव की आराधना में लोग उन्मत्त थे उसीका एक प्रकांड पोषक मिल गया। फिर भी अफलातून के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि मादन-भाव का उदय यूनान की गुयटोलियों में ही हुआ। हम पहले ही कह चुके हैं कि वासना का मुक्त विलास, संभोग की स्वच्छन्द लीला, आवेश का अलौकिक आदर, व्यभिचार का पचित्र स्वागत, संगीत का उत्क्रांत विधान एवं नाना प्रकार की अजीब बातों के साथ सुरा-सेवन प्रभृति अनोखे कृत्यों का पूरा प्रसार संसार के सभी देशों की गुह्यमंडलियों में था। इन मंडलियों की रति-प्रक्रिया और उल्लास के साध्य अानंद का आस्वादन आगे चत्न कर अलौकिक प्रेस के रूप में परिस्फुटित हुआ और लोग सहजानंद के उपासक बने रहे। भारत में सहजानंद के जो व्याख्यान हुए उनके संबंध में कुछ निवेदन करने की आवश्यकता नहीं । यहाँ केवल यह स्पष्ट करना है कि आर्य जातियों ने बुद्धि के बल पर सहजानंद का जैसा निरूपण किया वैसा शामी जातियों में न हो सका, पर वे उसके प्रसाद से वंचित न रहे। शामी जातियों में अन्य जातियों से भाव ग्रहण करने की तत्परता बनी रही। यहृदी जाति व्यापार में अति कुशल थी और भारत तथा यूनान के व्यापार में मध्यस्थ का काम करती थी। फलतः उस पर (१) अफलातून पर विचार करते समय रम्जे महोदय के इन शब्दों पर ध्यान रखना aiſee-l'lato was guided by ancient idcas, and was not inventing novelties, liis model is often to be sought iu Anatolia or farther east." Asianic elemeuts in Greek civilization p. 254,