पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत अर्यसंस्कृति का पूरा प्रभाव पड़ा। इस प्रभाव में पणि, हित्ती, मिद्यानी आदि जातियों का पूरा योग था। यहूदी जाति में जो कई संप्रदाय चल पड़े थे उसका प्रधान कारण बाहरी प्रभाव हो था। यूनान, ईरान और भारत के संसर्ग में आ जाने से शामी जातियों में “बुद्धौ शरणमन्दिच्छ” का सिंहनाद हुआ। फालो ( मृ० ६७ प० ) ने मूमा और अफलातून के मतों के समन्वय का प्रयत्न किया। यहूदी संघ में वाद-विवाद, तर्क-वितर्क होने लगे। एसीनो में गुह्य-विशा का प्रचार हो गया और वे एक प्रकार के संन्यासी या भिन्नु बन गए । मसीह प्रारंभ में एसीन थे। यद्यपि उनपर प्रार्थ-प्रभाव कम न था तथापि उनमें ज्ञान की अपेक्षा भक्ति ही अधिक थी। उनके उत्साही भक्त ज्ञान की उपेक्षा कर जिस 'प्रसाद' वा 'कृपा' को लेकर आगे बढ़े उसमें आश्वासन की अपेक्षा अभिशाप ही अधिक था। उनकी दृष्टि में एकमात्र परमपिता के एकाकी पुत्र पर ही विश्वास लाना मुक्ति का मार्ग था । किंतु मनुष्य स्वभावतः चिंतनशील प्राणी है। अंधकार में वह अधिक दिन तक नहीं ठहर सकता । अतएव, जिनका मसीह पर विश्वास नहीं जमा उनमें बुद्धि का व्यापार बढ़ा। मसीही संघ ने उनको नास्टिक की उपाधि दी। कहा जाता है कि नास्टिक मत का प्रवर्तक साइमन नामक मग था। मग जाति का तसव्वुफ में कितना योग है, इसका अनुमान शायद इसी से किया जा सकता है कि सूफी आज भी 'पीरेमुगा' का जाप जपते हैं और उनसे मधु-पान की याचना करते हैं। इससे स्पष्ट अवगत होता है कि नास्टिक मत वस्तुतः सूफी मत का सहायक है। नास्टिक मत यथार्थ में एक यौगिक मत का नाम है। उसमें उस समय के सभी प्रचलित मतों का योग है। सारांश यह कि सारग्राही जीवों ने अपनी मधुकरी वृत्ति से जिज्ञासा के आधार पर जिस तत्त्व का संग्रह किया वही नास्टिक मत के नाम से ख्यात हुआ। नास्टिक मत के व्यर्थ के विश्लेषण में न पड़, हम इतना ही कह देना अलं समझते हैं कि उसमें केवल मादन-भाव का (१) बाज जीज़ज़ इनफ्लूएंस्ड बाई बुद्धिज्म, पृ० ११४-१५ । (२) इनसाइक्लोपीडिया भाव रेलिजंस एंड एथिक्स ।