पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४७

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत कहा कि यदि जीवात्मा दुलहिन है तो शरीर दहेज । श्रागस्टीन' अपने को ब्रह्म कहना ही चाहता था कि शामी-संकीर्णता के कारण रुक गया। डायोनीसियस मसीही संतों में एक पहेली सा हो गया । नव-अफलातूनी-मत के सेक के प्रभाव से उसने मसीही मत में भक्ति-भाव को जो रूप दिया वह सर्वथा सूफियों के अनुकूल है । बहुत से लोग तो डायोनीसियस को सूफीमत का सारा श्रेय दे देने में भी नहीं हिचकते । सारांश यह कि आर्य जाति की कृपा से मादन-भाव की धारा स्वच्छ, संयत एवं सबल हो शामीसंघ को आप्लावित करती रही और अपनी रक्षा के लिये कुछ तर्क-वितर्क भी करने लगी। प्लोटिनस संसार के उन इने-गिने व्यक्तियों में है जो किसी ईश्वर का संदेश लेकर नहीं आते, प्रत्युत अपनी अनुभूति से उसे कण-कण में देखते ही नहीं औरों को भी उस दिव्य चत्तु का पता बताते जो मनुष्यमात्र की थाती है और जिसे विभु ने आदर्श-रूप से सबके हृदय में रख दिया है। प्रसिद्ध ही है कि तृष्णा की शान्ति के लिये वह पारस तक आया था। उस पर वेदांत का इतना व्यापक एवं गहन प्रभाव पड़ा कि वह सहज ही भारत का ऋणी सिद्ध हो जाता है। पृथिवी से लेकर नक्षत्र-मंडल तक उसे जिस एकाकी सत्ता का आलोक मिला उसका निदर्शनं उसने इतने अनूठे तथा मनोरम ढंग से किया कि उसके उपरांत सभी उस पर मुग्ध हो उस एक की आराधना में तल्लीन हो गए। सूफीमत के अध्यात्म में उसका योग अचल है। बाह्य दृष्टि को फेरकर अभ्यंतर की जो उसने परीक्षा की तो उसमें उसको उस एक का दर्शन मिला जिसको देखकर फिर और कुछ देखना शेष नहीं रह जाता । उसने हृदय के भीतर झाँकने का अनुरोध किया और संसार से उड़ भागने की दीक्षा दी। उसकी दृष्टि में आत्मा का न तो जन्म होता है न मरण । उसके विचार में 'सत्यं शिवं सुंदरं' का आधार दृश्य से परे और अज्ञेय (१) दी मिस्टिक्स आब इसलाम, पृ० ११८ । (२) ए. लिटरेरी हिस्टरी आव पर्शिया, पृ० ४२० । (३) दी फिलासफी आव प्लोटिनस, पृ. १२, १४, २३ ।