पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४९

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३२ तसव्वुफ अथवा सूफीमत शासन में उसे "पिता का राज्य' दीख पड़ा। उसमें जो साधु थे उनकी भी दृष्टि में मसीह ही परमपिता के एकाकी पुत्र थे। उनकी लाडिली दुलहिन उक्त संस्था ही थी। फिर यह किस प्रकार संभव था कि उसके देखते किसी अन्य को सुहाग मिले । सेवा एवं प्रेम का भाव उनमें इतना अवश्य था कि दलितों के साथ सहानुभूति प्रकट कर उनके घाव को धो या उन्हें 'बपतिस्मा दे दें। धर्माधिकारियों की धाक इतनी जमी थी कि उनकी व्यवस्था में किसी को आपत्ति करने का अधिकार न था। स्त्री की यह दशा थी कि उसकी दृष्टि ही पाप की जननी थी। हौवा की संतान पतन की प्रतिमा समझी जाती थी। धर्माधों की इस घोर व्यवस्था में संस्था को ही दुलहिन का सौभाग्य मिला। व्यक्ति-विशेष तो लुक-छिपकर ही मसीह के विरह का अनुभत्र कर सकता था। यहूदियों को भी यही प्रवृत्ति थी। उनकी दृष्टि में इसराएल के अतिरिक्त किसी अन्य जाति पर ईश्वर की अनुकंपा हो नहीं सकती थी। सच पूछिए तो शामी जाति इस समय सिकुड़कर 'इसराएल-वंश' की कृपा-कोर जोह रही थी। उसी का बोलबाला था। संयोगवश अरव के कुरेश-वंश के काहिन-कुल का एक दीन बालक समय के प्रभाव से एक संपन्न रमणी की चाकरी करता था। वह अपनी कुशलता एवं शील- स्वभाव के कारण उसका स्वामी बन गया। व्यापार में जो विचार हाथ आए, मक्का (१) शार्ट हिस्टरी भाव वीमेन, प० २१६ । (२) देवदासियों की मर्यादा नष्ट होने पर मी शामी मतो में अलौकिक प्रणय किसी न किसी रूप में बना रहा । पौलुस प्रभृति मसीही प्रचारकोंने केवल संस्था या मसीही सघ पर ध्यान दिया। सूफियों के प्रभाव से जब यूरोप में प्रेम का प्रवाह उमड़ा और 'सेड' तथा 'शिवालरी' के कारण पुरुषों का अभाव हो गया तब यह आवश्यक हो गया कि मसीही संघ रमणियों के प्रति उदार हो। सूफियों के अलौकिक प्रेम से प्रोत्साहित हो मसीहियों ने भी मसीह और मरियम को रति का खलौकिक आलंदन चुना। धर्म का सहारा मिल जाने के कारण इन प्रेमियों की प्रतिष्ठा बढ़ी और मसीह की दुलहिनों का सम्मान हुआ।