पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/५१

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत तब उनको चुनौती दी गई कि वे एक दूसरी किताब कुरान की टक्कर की बना तो दें । फिर भी लोगों को संतोष न हुआ। वे मुहम्मद साहब को शाइर ( कवि), काहिन (दैवज्ञ), मजनून ( उन्मत्त ) श्रादि न जाने क्या क्या कहते रहे । मुहम्मद साहब को जान बचाकर मक्का से मदीना प्रस्थान करना पड़ा। बदर के संग्राम में मुहम्मद साहब अजीब ढंग से विजयी हुए । लोगों को विश्वास हो गया कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, और कुरान आसमानी किताव है। मुहम्मद साहब का पक्ष पुष्ट हो चला । अनेक वीर-धुरीण अरब उनके दल में आ गये। बहुतों से सम्बन्ध भी स्थापित कर लिया। अनेक पारिवारिक और राजनीतिक प्रश्न उठे। सबका समाधान कुरान से कर दिया गया। मुहम्मद साहबका महत्त्व बढ़ा । अल्लाह के साथ उनका भी नाम जोड़ दिया गया । उनकं उठने-बैठने, चलने-फिरने, आने- जाने, खाने-पीने, कहने-सुनने आदि सभी व्यापारों पर पूरा ध्यान दिया गया। संक्षेप में उनके मत, इसलाम, का प्रचार होने लगा। मुहम्मद साहब की मनोवृत्तियों के विषय में अथवा उनके सूफीत्व के संबंध में विद्वानों में गहरा मतभेद है। विज्ञान के कट्टर भक्त तो उनको अपस्मार से प्रस्त ही समझते हैं। ऐसे महानुभावों का भी अभाव नहीं जो उनको प्रच्छन्न रसूल एवं निपुण नीतिज्ञ मानते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि मुहम्मद ईश्वर के मद मे मस्त रहनेवाला कवि था। वह अपनी तरल भावनाओं की परीक्षा नहीं कर पाता था और सदा भाव-भक्ति में मम रहता था। उसका अंतिम जीवन प्रौढ़ावस्था को अपेक्षा कम सूफियाना था । यथार्थतः वह धार्मिक अथवा भक्त नीतिज्ञ था। आर्चर' महोदय के मत में मुहम्मद साहब मन एवं कर्म से वास्तव में भक्त थे। अरब के निकटवर्ती प्रांतों में उस समय किसी प्रकार को योग-प्रक्रिया प्रचलित थी। कतिपय अरब उससे (१) मिस्टिकल एलिमेंट्स इन मोहम्मद, १० ७६ । (२) दी आइडिया श्राव पर्सनालिटी इन सूफीम, पृ. ४ । (३) एस्पेक्ट्स आव इसलाम, पृ० १८७, २५९ । (४) मिस्टकल एलिमेंट्स इन मोहम्मद, पृ० २६, ८७ ।