पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/६०

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परिपाक उम्मैया-वंश के शासन के पहले ही जो जिज्ञासा चल पड़ी थी वह इतनी प्रबल हो उठी कि इसलाम में एक ऐसे दल का उदय हुअा जो सर्वथा युद्धिवादी था। प्रवाद है कि उक्त दल का नामकरण बसरा के हसन ( मृ० ७८५ ) ने मोतजिली किया था। सफीमत के समीक्षक हसन का नाम नहीं भूलने । हसन उस समय की जिज्ञासा का केंद्र था । उसमें मादन-भाव का प्रसार तो न हो सका, किंतु उसके प्रभाव से संत-मन को प्रोत्साहन मिला और सूफोमत के अनेक अंग पुष्ट हो गए । प्रसिद्ध है कि एक रमणी' ने हसन को इस बात का उपालंभ दिया था कि यदि वह अल्लाह के इश्क में उसी तरह मन रहता जिस तरह वह प्रमदा अपने प्रिय के प्रम में मन थी तो उसे उसके नग्न अंग कदापि गोचर नहीं होते। तो भी हसन प्रेम- प्रसाद का वितरण न कर सका । वह उदार, शांत और तपस्वी था। उसकी दृष्टि में उदारता' का एक कण भी प्रार्थना तथा उपवास में सहन गुना अधिक है। हसन प्रेम का पुजारी नहीं, सद्भावों का विधायक था। प्रेम की अवहेलना अधिक दिनों तक न हो सकी। इसलाम में उसकी प्रतिमा का उदय हुआ । सूफी-साहित्य में राविया का नाम अमर है । राबिया ( मृ०८०६) की प्रेम-प्रक्रिया पर विचार करने के पूर्व ही हमको यह जान लेना परम आवश्यक है कि अरबों में भी अन्य जातियों की माँति मनुष्य का विवाह किसी जिन, देव या अलख से हो जाता था। इस धारणा' का निर्वाह अभी तक अरब में हो रहा है । राबिया दासी थी। वह अपने को अल्लाह की पत्नी समझती थी। उसके विषय में अत्तार का प्रवचन है कि जब एक प्रमदा परमेश्वर के मार्ग पर पुरुष की भाँति अग्रसर होती है तब वह स्त्री नहीं। यदि स्त्रियाँ उसी की तरह भक्त होती तो उन्हें (१) सेंट्स आव इसलाम, ५० २२ । (२) ज० रो० ए० सो०, १९०६ ई०, १० ३०५ । (३) दी रेलिजस लाइफ एंड ऐटीच्यूड इन इसलाम, पृ० १४३.१४८ । (४) राबिया दी मिस्टिक, पृ० ४ ।