पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/६३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत ईरान की आर्य-संस्कृति इसलाम की रग रग में दौड़ने की चेष्टा कर रही थी । संक्षेप में यह इसलाम में चिंतन का युग था। इसमें कुरान के कोरे प्रमाण और हदीस की निरी गवाही मात्र से इसलाम का सिक्का नहीं जम सकता था। उसको सहज जिज्ञासा को शांत करना था। ईरान इसलाम का सदा से एक अजीब उपनिवेश रहा है। इसलाम में पार. सोको का चाहे जितना योग रहा हो, पर इसलाम को कबूल कर पारसीकों ने एक नवीन मत धारण किया। इसलाम में शायद ही कोई ऐसा धार्मिक आंदोलन छिड़ा हो जिसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ईरान से कुछ भी संबंध न रहा हो। तसव्वुफ तो बहुत कुछ ईरान का प्रसाद है । सूफीमत को व्यवस्थित रूप देने में इसलाम के उन संप्रदायों ने विशेष सहायता दी जो कुरान, हदीस, ईमान, कर्म, भाग्य, न्याय आदि प्रसंगों पर विवाद करते और अपने अपने मतों का अलग अलग निरूपया करते थे। कुरान के विषय में सबसे विकट प्रश्न उसके स्वरूप के संबंध में था। मुहम्मद साहब के पहले वह कहाँ और किस रूप में थी। जो लोग कुरान का उपहास करते अथवा उसकी अनुकृति में एक दूसरी कुरान रच रहे थे उनको दंड दिया गया और इससे कुरान की प्रतिष्ठा भली भाँति स्थापित हो गई । अपने पक्ष के प्रतिपादन एवं विपक्ष के निराकरण के लिये कुरान प्रमाण तो कभी की बन चुकी थी, अब धर्म-संकट से बचने और आत्म-तुष्टि के लिये भी उसका प्रमाण अनिवार्य हो गया । उसमान के समय में उसको जो रूप मिल गया था उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता था, अतः उसकी शब्द-शक्ति पर ध्यान दिया गया। अभिधा का स्थान लक्षण एवं व्यंजना को मिल गया। हदीस की सीमा भी अब परिमित हो चली थी । उसको लेकर रूढ़ि और विवेक, 'नक्ल' और 'अक्ल' का झगड़ा खड़ा हो गया । कर्ता और कर्म, भाग्य एवं व्यक्ति का विवेचन भी आरंभ हो गया। न्याय की जिज्ञासा प्रतिदिन बढ़ती गई। 'अाज्ञा' और 'प्रसाद' का विवाद छिड़ा । सारांश यह कि इसलाम के नाना संप्रदाय अपने मत के निरूपण में लगे । मोतजिला संप्रदाय ने सूफियो के अनुकूल परिस्थिति उत्पन्न कर दी । उसने कुरान की अद्भुत व्याख्या, न्याय का उचित प्रतिपादन, तौहीद का वास्तविक विवेचन करने की