परिपाक 1 जो वेष्टा की उसमें चाहे उसको सफलता भले ही न मिली हो; किंतु उसने इसलाम को झकझोरकर सतर्क कर दिया। मुजी दल उसको रोक न सका । खारिजी भी तटस्थ न रह सके । कादिरी भी प्रयत्नशील हुए। सूफियों की मधुकरी वृत्ति ख्यात ही है । वे ज्ञानार्जन में मग्न रहे। इस युग के प्रमुख सूफी इब्राहीम तथा दाऊदताई कहे जा सकते हैं । इब्राहीम मे मुल्लाओं की उपेक्षा तथा कर्मकांडों की अवहेलना थी। परमेश्वर के श्राज्ञा-पालन और संसार की सार-हीनता पर वे विशेष जोर देते थे । दाऊद कहा करते थे-"मनुष्यों से उसी तरह दूर भागो, जिस तरह शेर से दूर भागते हो । संसार का व्रत रहो और निधन का पारण करो।" स्पष्ट ही इन सज्जनों में अनुराग से कहीं अधिक विराग का बोलबाला है अभी संग्राम-जनित क्षोभ का उपशमन और परमेश्वर की आज्ञा का पालन ही साधुओं के लिये स्वाभाविक था । प्राचीन संस्कार इसलाम से भयभीत हो एकांत- सेवन में ही लीन थे। प्रेम के संबंध में इतना जान लेना उचित है कि अब तुर्क और मगबच्चे माशूक बन चले थे। उसके दिव्य एवं भ्रष्ट रूप का व्यापार साथ ही साथ बढ़ रहा था। सूफी शब्द प्रयोग में आ गया था और दमिश्क में मठ भी स्थापित हो गया था। मंसर ( ऋ० ८३१) तथा हारूँ रशीद की उत्कट जिज्ञासा ने जो देशकाल उत्पन्न किया वह इसलाम की परिधि को पार कर चुका था । संस्कृतियों के संग्राम से बिभेद मंगलदायक हो गया। अबू हनीफा ने धर्मशास्त्र का पर्यान्नोचन किया। दमिश्क के जान ने मसीही दर्शन का अनुशीलन किया, और भक्ति-भावना पर इससे उचित प्रकाश पड़ा। भारत में सिंध के मुसलमान भी मौन न रहे । मुल्तान विद्या तथा तसव्वुफ का केंद बन रहा था। कतिपय बौद्ध भी इसलाम स्वीकार कर चुके थे। (१)ज. रो० ए० सो०, १९०६ ई०, पृ. ३४७ । २) शेरुल अजम, च० भा०, पृ० ८७ । (३) दी मिस्टिक्स पाव इसलाम, पृ० ३ । (४) अरब और भारत के संबंध, पृ० ३१२ ।