पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/६६

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परिपाक बसरा और बाद ही इस समय सूफीमत के केंद्र रहे जो श्रार्य संस्कृति से सर्वथा अभिषिक्त थे। मामून के निधन के उपरांन नर्क का पक्ष दुर्वल पड़ गया। जनता भाव की भूखी होती है, तक मे उसका पेट नहीं भरता । उसको किसी ठोस पदार्थ की भाव. श्यकता पड़ती है । वह सदाचार का अनुकरण करती है, ज्ञान का अनुशीलन नहीं । अहमद इब्न हंबल (मृ० ९.१२) मामून के कृत्यों का कट्टर विरोधी था। उसको उचित अवसर मिल गया। वह अपनी सजनता, श्रद्धा एवं तप के कारण जनता में पूजनीय हो गया। मोतजिलियों का तर्क जनता के काम का न था । उनकी बातों पर मर्मज्ञ भनीषी ही ध्यान दे सकते थे। हंबल ने उनके खंडन का प्रयत्न किया । हंबल तथा इसलाम के अन्य प्राचार्य उसको कुरान, हदीस एवं सदाचार के भीतर घेर रहे थे ; इधर हृदय के व्यापारी उसको व्यापक बनाने में मग्न थे। विवाद इतना बड़ गया था कि बुद्धि की सर्वथा अवहेलना असंभव थी। प्रेम इतना पक्व हो गया था कि उसका आस्वादन अनिवार्य था। इसी परिस्थिति में मिस्र का जूलनून आगे बढ़ा । राबिया ने जिस प्रेम का आनंद उठाया था जूलनून ने उसका निदर्शन किया। इल्म और म्वारिफ, ज्ञान और प्रज्ञान का भेद बता जूलनून ने प्रेम को अज्ञात्मक सिद्ध किया । उसकी हाष्टे में मारिफल का संबंध खुदा की मुहब्बत वा प्रसाद से है। उसके पहले हाफो ने परमेश्वर को हबीब कहा था, किन्तु उसने उसका निरूपण नहीं किया। इसलाम में तौहीद का राग आलापा जाता था, पर इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता था कि अन्लाह की अनन्यता तभी पकी हो सकती है जब उसके अरिरिता कुछ भी शेष न रहे, केवल अन्य देवता के निषेध से नहीं। मोतजिलियों ने इस क्षेत्र में माग-प्रदर्शक का काम किया था, किन्तु उनका अधिकतर ध्यान कुरान की अनित्यता तक ही रह गया था। अस्तु, जूलनून ने तौहीद का प्रकाशन कर इसलाम को प्रेम की ओर अग्रसर किया और बायजीद ने अपने को धन्य कह अनुभवाद्वैत (१) दी श्राइछिया भाव पर्सनालिटी इन सतीषम पृष्ठ । X