पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/६७

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तसव्वुफ श्रथवा सूफीमत का आभास दिया। जूलनून (मृ. ९१६) का कहना है कि परमेश्वर का ज्ञान हमें परमेश्वर से प्राप्त होता है। उसके विषय में हम जो कुछ कल्पना करते हैं वह उसके विपरीत होता है। सर्व-समर्पण कर जो परमेश्वर को वरता है वही जन है, क्योंकि परमेश्वर भी उसीको चुने रहता है। जूलनून ने बज्द, समा, तौहीद, कीमिया तंत्र आदि प्रसंगों पर भी विचार कर प्रेम को प्रतीक सिद्ध कर दिया। फलतः उसे मलामती, जिंदीक आदि की उपाधि, कुल्ब की पदवी तथा कारावास का दंड मिला । जूलनून के अतिरिक्त और भी अनेक सूफी इस काल में इधर-उधर अपनी छटा दिखा रहे थे। सूफियों की तालिका उपस्थित करने की आवश्यकता नहीं । हमें केवल उन सूफियों का परिचय प्राप्त करना चाहिए. जिनका सूफीमत के उत्थान में कुछ विशेष हाथ है। यह देखकर चित प्रसन्न होता है कि इस समय बसरा के मुहासिबी ने 'रिजा' पर जोर दे एक सूफी-संप्रदाय का प्रवर्तन किया जो उसीके नाम से ख्यात हुश्रा। यजीद (मृ० ६३१ ) शुद्ध पारसी संतान था। उसका पिता जरथुष्ट्र का उपासक था। उसके योग से सूफीमत में अद्वैत का अनुष्ठान चला। उसने परमात्मा को अंतर्यामी सिद्ध किया और कण कण में उसीका विभव देखा। आत्म-दर्शन में उसने परमेश्वर का साक्षात्कार किया। वह जीवात्मा को परमात्मा से भिन्न नहीं समझता। उसका प्रवचन है कि परमात्मा के प्रति जीवात्मा का जो प्रेम है उसमे जीवात्मा के प्रति परमात्मा का प्रेम पुराना है। जीव अज्ञानवशा समझता है कि वह परमात्मा से प्रेम कर रहा है ; परंतु वास्तव में (१) ज० रो० ५० सो० १६०६ ई., पृ० ३१० । (२) इनसाइक्लोपीडिया श्राव इसलाम, पृ० ६४६ । ३) जिदीक शब्द की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानी में मतभेद है। प्रतीत होता है कि वस्तुतः इस शब्द का मूल अर्थ पारसियों का द्योतक था और इसका सम्बन्ध उनके धर्मग्रन्ध जैद से था। धीरे धीरे इस शब्द का प्रयोग स्वतन्त्र विचार के लोगों के लिये होने लगा। मुसलमानों में जो स्वतन्त्र विचार रखते थे और बात बात में श्रासमानी किताबों की दाद नहीं देते थे, मुसलिम उन्हें जिंदीक कहने लगे।