पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/७०

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परिपाक था। वह स्वतः आवेश की दशा में सूफोमत का विधान करता और इसलाम के नगंस शासकों को शांत रखता था । सूफीमत का शिरोमणि, तसव्वुफ का प्राण, अद्वैत का आधार, शहीदों का आदर्श गचमुच हल्लाज ही था। हल्लाज का प्रचलित नाम मंसूर है । मंसूर का 'अनन्हक' सूफीमत की पराकाष्टा ही नहीं परम गति भी है । यह उद्घोष हल्लाज की स्वानुभूति का प्रसाद है, किसी कोरे उल्लास का उद्भाव नहीं। जिन मसीही पंडितों' को इसमें संदेह है और जो हल्लाज को मसीह की छाया मात्र समझते हैं उनको यह अच्छी तरह स्मरण रखना चाहिए कि मसीह पिता का राज्य पृथिवी पर स्थापित करने आए थे, प्रियतम में तल्लीन होने नहीं; मसीह चंगा करने आये थे, विरह जगाने नहीं। फलतः मसीह के उपासकों ने रक्त से भूमंडल को रँगा और हल्लाज के प्रशंसकों ने अपने रक्त से संसार को अनुरक्त कर सर्वत्र प्रेम का प्रसार किया । मसीह ने पड़ोसी के साथ साधु व्यवहार करने का विधान किया तो मंसूर ने पड़ोसी को आत्मरूप देखने का अनुरोध । सारांश यह कि मंसूर के मर्म को समझने के लिये शामी संकीर्णता से ऊपर उठ मुक्त मानव भाव-भूमि पर विचरना चाहिए । मंसूर एवं मसीह के मार्ग सर्वथा भिन्न थे। समय भी उनका एक न था । मंसूर मसीह का आदर करता था, उनके आत्मोत्सर्ग को उत्तम समझता था; पर इतने से ही वह उनका अनुयायी नहीं कहा जा सकता। मसीह के 'पिता का राज्य' और मंसूर के 'अनल्हक' में बड़ा अंतर है। मसीह संदेश सुनाने आए थे, मंसूर इसी संसार के अनुशीलन में 'अनल्हक' की अनुभूति दिखा लोगों को जगा रहा था। मंसूर तो सत्य जिज्ञासा की प्रेरणा से भारत आया था; उसी भारत में जहाँ 'अहं ब्रह्मास्मि' का निरूपण हो रहा था । उसकी इस देशाटन की चाट रज्जुकला या नर-विद्या न थी। हाँ, वह सूत्र अवश्य था जिसका परिणाम उसका 'अनल्हक' है। पजीद परमात्मा में इतना अनुरक्त था कि अंत में उसने 'श्रो तू मैं' का साक्षात्कार (१) स्टडीज़ इन दी साइकालानी आब दी मिस्टिक्स, पृ० २५८ । (२) ए लिटरेरी हिस्टरी श्राव एशिया, प्रथम भाग, पृ० ४३१ ।