पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/७५

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५८ तसव्वुफ अथवा सूफीमत के विवाद चल पड़े थे उनका समाधान लोकों की कल्पना कर उसने बड़ी पटुता मे कर दिया । उसका कथन है कि मनुष्य 'मुन्क' का निवासी हैं । रूद 'मलकून' से आती और फिर वहीं चली जाती है ! संदेश-वाहक फरिश्ते 'जबरन' के निवासी हैं। अन्य फरिश्ते 'मलकूत' में रहते हैं । इसलाम मलकूत तथा कुरान जबरून से संबद्ध है । सूफी जो अपने को 'हक' कहते हैं उसका रहस्य यह है कि अल्लाह ने आदम को अपना रूप दिया, उसमें अपनी रूह फेंकी। हदीस है कि जो अपनी रूह को जानता है वह ईश्वर को जानता है। वस्तुतः रूह अश और ईश्वर अंशी है। अतएव सूफियों का 'अनाहक' इसलाम के प्रतिकूल नहीं हो सकता। स्वयं मुहम्मद साहब रसूल होने के पहले सूफी थे। सूफियों को सचमुच इलहाम होता है रसूल एवं सूफी का प्रधान अंतर यह है कि जहाँ सूफीत्व का अंत है वहाँ दूतत्व का प्रारंभ होता है। गजाली वाद-विवाद को व्यर्थ समझता है। उसकी दृष्टि में सत्संग, स्वाध्याय, अभ्यास एवं नियम का पालन ही यथेष्ट है । तर्क-वितर्क तथा कलाम से उसको विशेष ग्रेम नहीं, यद्यपि वह “हुज्जतुल इसलाम' की उपाधि से विभूषित है। कलाम और नीति के विषय में उसने जो कुछ कहा उसका स्वागत तो इसलाम ने किया ही; पर उसके उस अंग को उसने अपना आधार ही बना लिया जो 'अक्ल' की धज्जियाँ उड़ा, 'नक्ल' की संरक्षा करते हुए, 'कश्फ' का निरूपण करता इमाम गजाली की कृपा से तसव्वुफ की प्रतिष्ठा स्थिर हो गई। उसको इसलाम की पक्की सनद मिली । जुनैद के काम को इमाम गजाली ने खूबी के साथ पूरा कर दिया । उसके उपरांत तसव्वुफ में जिली, अरबी, रूमी प्रभृति सूफियों ने जो योग दिया वह भी निराला है । उनकी कृपा से तसव्वुफ मरुस्थल का नन्दन हो गया इसमें सन्देह नहीं। (१) मुसलिम थियालोजी, पृ० २३४ । (२) दी आइडिया भाव पर्सनालिटी इन सूफीम, पृ० ४४ ।