पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/७९

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत मुल्ला, काजी, फकीह का, तीसरे हृदय की उदात्त वृत्तियों के प्रसार का । निदान उनको बाह्य वातों पर भी ईमान लाना पड़ा । ईमान के इस व्यापार में उनको कुछ नवीन तथ्यों के प्रतिपादन की आवश्यकता तो पड़ी; पर उनको किसी प्रकार की विल- क्षण उद्भावना की जरूरत न थी। मनुष्य जिस भावभूमि में विहार करता है, जिस प्रवाह में निमग्न होता है, जिसका आनंद उठाता है उसका क्षेत्र ममता के कारण इतना संकीर्ण कर देता है कि उसके व्यापक रूप का उसे बोध ही नहीं हो पाता। यह दशा तब तक बनी रहती है जब तक प्रात्मदृष्टि अंतर्मुख नहीं होती । जहाँ उसकी दृष्टि भीतर की ओर मुड़ी उसको स्पष्ट हुआ कि वास्तव में सबका स्रोत वही है । सूफीमत एवं इसलाम के ईमान में भी यही बात है । मुसलिम कोरे शब्द का आदर करता है तो सूफी उसके अर्थ को सर चढ़ाता है । यही कारण है कि सूफियों का ईमान असीम तथा अपरिमित होते होने परमात्मा या विश्वात्मा तक जा पहुँचता है और समत्व का आदश करता है । ईमान की प्रेरणा अंतःकरण की प्रवृत्ति है। अभ्यास के क्षेत्र में सभी ईमान ईमान ही कहे जाते हैं । सूफियों का तो दावा है कि मनुष्य परमात्मा या उसकी विभूति के अतिरिक्त किसी अन्य पर ईमान ला ही नहीं सकता । उनकी दृष्टि में समाधि,बुत आदि की पूजा भी बस उसी प्रियतम की अाराधना है। निदान, सूफियों का ईमान व्यापक और उदात्त है । फिर भी उनके ईमान का सामान्य परिचय प्राप्त कर लेना तसव्वुफ के स्वरूप-बोध के लिये प्रावश्यक है । ईमान के वास्तविक आधार या आस्था के अभीष्ट आलंबन वस्तुतः अल्लाह' ही । अल्लाह की अनुकंपा से फरिश्ते, रसूल, किताब, कयामत सभी ओत-प्रोत और (१) अल्लाह शब्द वास्तव में यौगिक है, किंतु कुछ लोग उसे रूढ़ मानते है । अनेक देवताओं का निराकरण कर जिस अल्लाह का प्रतिष्ठा अरब में हुई वह यहोवा का समकक्ष था । यहोवा को साकार ( इसराएल पृ० ४५८) सत्ता में यहूदियों का विश्वास था। इसलाम में जब चिंतन का प्रारम्भ हुआ तब अल्लाह के साकार स्वरूप में मनीषियों को संदेह होने लगा। सामान्य मुसलिम अल्लाह के साकार ( तबसीम ) और सगुण (तशबीह ) स्वरूप का भक्त था। शामियों की धारणा थी कि अभीष्ट देवता मरण के