पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/८२

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श्रास्था जिसको लेकर समय समय पर रसूल पाते और जनता को सन्मार्ग पर चलाते हैं । जब कभी उसकी इच्छा होगी, प्रलय कर प्राणियों के लिये शाश्वत स्वर्ग या नरक का विधान कर देगा । उसके कुछ फरिश्ते हैं जो उसकी आज्ञा के पालन में दौड़-धूप करते, आते-जाते और जीवों के कर्म लिखते रहते । उसका एक ऐसा भी फरिश्ता है जो लोगों को फुसलाता, गुमराह करता तथा अल्लाह के विपरीत उभारता रहता है। फरिश्तों के अतिरिक्त वह स्वयं भी देख-रेख किया करता है । उसको किसी अन्य देवता की उपासना सह्य नहीं। वह नहीं चाहता कि कोई और उसका सानी हो । वह उन शुर-वीरों के लिये सुख-सदन बनाता, हरों का प्रबंध करता, भोग-विलास का विधान करता जो उसके लिये मरते-मारते, जीते-जागते उसीकी उपासना में लगे रहते हैं और कभी किसी दूसरे को नहीं भजते । हाँ, तो कुरान का स्वर्गस्थ अल्लाह केवल कठोर शासक ही नहीं है, अपितु हमारा रक्षक तथा उदार भी है । वह जिसे चाहता सन्मार्ग पर लगाता है । वह अादि है, अंत है, व्यक्त है, अव्यक्त है, स्वयंभू है, भगवान् है, रब्ब है, रहीम है, उदार है, घोर है, गनी है, नित्य है, कर्ता है, संक्षेप में प्रत्येक भाव का निकेतन है । भक्तों पर उसकी असीम कृपा रहती है, पर अभक्तों पर अनन्त-कोप भी । वह हमसे दूर भी है, निकट भी है । वह हमारी बातों को जानता है। हम किसी भी तरह उसकी दृष्टि से बच नहीं सकते। प्रणिधान और प्रपत्ति से ही हमारा उद्धार हो सकता है। किसी भी दशा में उसका संभोग नहीं हो सकता। हम उसको अपने श्रानंद-भोग की सामग्री नहीं बना सकते । हाँ, प्रसन्न होकर वह हमारे लिये भोग-विधान खूब कर सकता है । हमको शाश्वत सुख दे सकता है । उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि इसलाम का अल्लाह साकार एवं सगुण अल्लाह है । वह निराकार और निर्गुण ब्रह्म नहीं, एक विशिष्ट देवता ही है। सूफी सामान्यतः इसी प्रियतम के वियोगी हैं। अंतर केवल यह है कि मुसलिम अल्लाह की आराधना स्वर्ग-मुख के लिये करता है और सूफी अल्लाह के संभोग के (१) इनसाइलोपारिया श्राव इसलामालाह पर लेख ।