पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/८३

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तसब्बुफ अथवा सूफीमत 0 लिये । उसको अल्लाह का भय तो है, पर उसमें अल्लाह का रागात्मक खिचाव भी । अल्लाह की शक्ति, इसलाम को इष्ट है, शील उपासकों का आश्रय है, किंतु उसका सौंदर्य तसव्वुफ की बाँट में पड़ा है। सूफी उसके लावण्य पर मरते है । सूफियों का इतिहास इस बात का प्रमाण है कि सूफी 'अर्श कुर्सी' से कहीं अधिक अल्लाह के 'जमाल' पर मुग्ध हैं उसके प्रभुत्व से उसके प्रसाद को कहीं बढ़कर समझते हैं। उसके दीदार के लिये बिहिश्त को ठुकराकर जहन्नुम जाने के लिये लालायित रहते हैं । अल्लाह भी उनको लुभाने के लिये कभी कोई बुत बनता है और कभी कण कण में झाँकता फिरता है । रसूलों की जगह आप ही उतरकर फूल-पनों में अपना जलवा दिखाता और परम प्रेम की बाँसुरी बजाता है। देखते देखते आँखों के सामने ही वह हृदय में समा जाता है और वहीं से आँख- मिचौनी खेलता अथवा आत्मक्रीड़ा आरंभ कर देता है। निश्चय ही सूफियों के अल्लाह की अर्शकुसी हृदय में है, बाहर या बिहिश्त में नहीं । इसलाम में मुहम्मद साहब का महत्त्व इतना प्रगल्भ है कि उनके नाम का जाप अल्लाह के साथ दिन में पाँच बार किया जाता है। अल्लाह की अनन्यता से इसलाम को शांति न मिली । उसे मुहम्मद को 'रसूल-अल्लाह' मानना ही पड़ा । एक मनीषी ने ठीक ही कहा है कि जो अल्लाह की आराधना में किसी देवता को साझी नहीं देख सकता था उसीका नाम अल्लाह के साथ जुट गया और सलात में दिन में पाँच बार पुकारा जाने लगा। कारण कुछ भी हो, इतना तो निर्विवाद है कि स्वयं मुहम्मद साहब अन्य रसूलों को मानते थे। मुहम्मद हैं भी तो वह 'अहमद' जिसके विषय में पुराने रसूल भविष्यवाणी कर गए थे। उनके अनुयायी भी मुहम्मद को 'रसूल-अल्लाह' कहकर संतोष कर लेते हैं, कभी यह नहीं घोषित करते कि उनके अतिरिक्त अन्य रसूल नहीं हैं। सारांश यह कि इस- लाम में सभी रसूलों की प्रतिष्ठा है । रही सूफियो की बात । उनमें तो रसूलों की सीमा नहीं । राम और कृष्ण तक रसूल मान लिए गए हैं। सूफियों की विशेषता (१) दी इनफ्लूएस आव इसलाम, पृ० ६ ।