पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/८४

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आस्था उसी नूर यह है कि वे अन्य रसूलों की प्रतिष्ठा सामान्य मुसलमानों से अधिक करते हैं और मुहम्मद साहब को 'पुरुषोत्तम' सिद्ध कर देते हैं। मुहम्मद साहब की स्थिति सूफियों के लिये बहुत ही जटिल थी। परंतु उन्होंने इस खूबी के साथ उसे हल किया कि लोग उसको देखकर दंग रह जाते हैं। यदि हम वेदांत के शब्दों में कहा चाहें तो कह सकते हैं कि सूफियों की दृष्टि में मुहम्मद अल्लाह के कनिष्ठ रूप हैं। कारण कि उनकी ज्योति से सृष्टि हुई, उनकी प्रीति के कारण स्वर्ग का निर्माण हुआ और उनके कथनानुसार जीवों को फल भोगना पड़ेगा । आदम के पहले भी मुहम्मद का नूर (ज्योति) मौजूद था और से अन्य रसूल भी उत्पन्न हुए । इस प्रकार इसलाम के दबाव और दर्शन के प्रभाव के कारण सूफियों ने अंतिम रसूल को वह रूप दे दिया जो अपूर्व हो नहीं, कुरान एवं इसलाम के बहुत कुछ प्रतिकूल भी था। रसूल असमानी किताब लेकर सच्चे मजहब का प्रचार करते तथा सन्मार्ग की शिक्षा देते हैं । प्रायः सभी धर्मों में धर्मग्रंथों की अपार महिमा होती है। पर इमलाम का आग्रह है कि कुरान ही अंतिम और पूर्ण आसमानी किताब है; उसके बाद अब किसी अन्य किताब के उतरने की जरूरत नहीं है। सूफी भी कुरान के महत्त्व को खूब मानते हैं और उसको सभी आसमानी किताबों से श्रेष्ठ समझते है। तो भी उनका ध्यान कुरान की अपेक्षा अंतरात्मा की पुकार पर अधिक रहता है। उन्होंने कुरानपाक के अर्थ में जो छीन-झफ्ट की है उससे प्रकट होता है कि उनकी प्रतिभा शामी संकीर्णता का अतिक्रमण कर सामान्य मानव-भावभूमि पर ही विशेष फैलती है। हाँ, उनकी आत्मा ने यह स्वीकार तो कर लिया कि कुरान अल्लाह की किताब है, पर उसको यह कबूल न हो सका कि अब अल्लाह से उसका सीधा संबंध ही नहीं हो सकता। उन्होंने स्पष्ट कहा कि 'इलहाम' पर जीवमात्र का अधिकार है। किन्तु सबको 'वहीं नहीं नसीब होती, उसको एकमात्र रसूल ही पाते हैं। (3) 'वही' एक प्रकार का इलहाम है जो केवल रसूलों को होता है