पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/८७

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत कर्मों का प्रेरक मात्र कैसे माना जाय ? सूफी तो फरिश्तों को अल्लाह की वह शान समझते हैं जो उसके जमाल को गुप्त और जलाल को प्रकट करती है। फरिश्तों को श्रादम का सिजदा करने की आज्ञा मिली । सभीने आदम की वंदना की; पर इबलीस ने दिलेरी के साथ अल्लाह की अाज्ञा का उल्लंघन किया । फलतः वह अल्लाह का विरोधी और आदमी का बैरी बन गया । जो उसके फंडे में फँसा वह चौपट गया। शैतान का नाम ही बुरा है, उसका किसीके सर पर सवार हो जाना तो सीधे जहन्नुम को जाना है। कहा जाता है कि शैतान की कल्पना का मूल स्रोत पारसी मत में हैं। वहीं से शामी जातियों ने इसको ग्रहण किया । मूल कुछ भी रहा हो, इसलाम में इबलीस उपद्रवी और शैतान अल्लाह का प्रतिद्वंद्वी माना गया है । इबलीस तटस्थ रहता और शैतान सबको गुमराह करता हैं। अस्तु इबलीस ही वास्तव में जनता को धोखा देते समय शैतान बन जाता दोनों वस्तुतः एक ही हैं। कुरान में एक जगह इबलीस को जिन कह दिया गया है। एक महोदय का निष्कर्ष भी है कि इबीलस फरिश्ता नहीं जिन है; क्योंकि फरिश्ते कभी अल्लाह की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते। विचार करने पर व्यक्त होता है कि इबलीस निश्चय ही एक फरिश्ता है। यदि वह फरिस्ता नहीं, जिन होता तो उसे उस अपराध का दंड क्यों मिलता जिसके भागी केवल फरिश्ते थे। अतएव, इबलीस एक फरिश्ता ही सिद्ध होता है। कुरान में तो विपरीत आचरण के कारण उसको जिन कह दिया गया है, अन्यथा है तो वह फरिश्ता ही। इबलीस के बारे में औरों की चाहे कुछ भी धारणा हो पर सूफी तो उसको अल्लाह का अनन्य भक्त ही समझते हैं। उनकी दृष्टि में जिन फरिश्तों ने अल्लाह की आज्ञा से अल्लाह को छोड़कर आदम का सिजदा किया उन्हें अल्लाह का सच्चा प्रेम नहीं था। किसी लोभ या भय-विशेष के कारण ही उन्होंने वैसा किया । १ अली जोरोस्ट्रियनीजम, पृ० ३२५ । २ कुरान १८,५०। ३ दी होली कुरान, नोट १५०५ ।