श्रास्था इबलीस अल्लाह का सच्चा भक्त है। उसे केवल अल्लाह से नाता है। फिर भला अल्लाह के सामने वह किसी बंदे की बंदगी कैसे बजा सकता है ? अल्लाह ने अपनी आज्ञा की अवहेलना देख उसे जो दंड दिया उसे उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उसको उसने प्रेम-प्रसाद के रूप में ओढ़ लिया। अस्तु, इब- लीस भक्तों की कसौटी बन गया। जो उसकी परीक्षा में खरा उतरा वही अल्लाह का सच्चा भक्त ठहरा, अन्य ढोंगी और पाखंडी सिद्ध हुए। सूफी इबलीस की इस अनन्य रति पर मुग्ध हैं। उससे अनन्यता का पाठ पढ़ते हैं। इसलाम में जिनों का काफी अातंक है । स्वयं मुहम्मद साहब जिनों की सत्ता के कायल थे और उनके विरोध में लगे रहते थे। जिन की उत्पति अाग से मानी जाती है। जिन अल्लाह के भजन में विघ्न डालते हैं। कहा जाता है कि हजरत सुलैमान ने जिनों को एक संपुट में बंद कर दिया था । सामान्य अरब जिन और मनुष्य का प्रणय आज भी मानता है। उसकी समझ में जिन से मनुष्य का विवाह हो जाता है । अरवी सा मर्मज्ञ ज्ञानी भी इस प्रणय का कायल था। और लोग जिनों को प्रत्यक्ष देखते तथा कभी कभी उनसे बातचीत भी कर लेते हैं । और सूफी फकीर तो जिनों की झाड़-फूंक में लगे ही रहते हैं। जो हो सामान्यतः जिन और फरिश्ते में बुरे-भले का अंतर है। सूफी दोनों की सत्ता मानते हैं पर प्रियतम के वियोग में किसी की परवाह नहीं करते । बस रात दिन तड़पते रहते हैं । नबियों और फरिश्तों के प्रसंग में संतों का भी नाम आ ही जाता है। संतों पर सूफियों की पूरी आस्था होती है। सच तो यह है कि यदि संस्कार और शासन की बाधा न हो तो सूफी नबी एवं फरिश्तों की चिंता भी न करें । फरिश्तों से अल्लाह का काम निकलता है. वे इंसान के काम नहीं आते। नबी कुछ कहने एवं रसूल कुछ कहने तथा करने के लिये संसार में आते हैं। जनता सदैव उनको अपने बीच नहीं पाती। उसे तो उनका दर्शन या सत्संग कभी कभी नसीब होता है । (१) नोट्स मान मुहम्मेड नीज्म, पृ० ८३ । (२) दी रेलिजस एट्टिच्यूड एण्ड लाइफ इन इसलाम, ५० १४८ ।