पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/८९

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७२ तसव्वुफ अथवा सूफीमत निदान उसको ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है जो उसीमें से एक हो, उसकी बातों को मनता एवं सदा उसके काम आता हो। किसी किताब से बिरले ही को संतोष मिलता है। हृदय हृदय चाहता है. आसमानी किताब नहीं। यही कारण है कि तसव्वुफ में पीरों की इतनी प्रतिष्ठा है । 'गौस' अपने समय का प्रधान पीर समझा जाता है । 'कुत्ब' संसार की धुरी है । उसीकी कृपा से संसारचक्र इस व्यवस्थित रूप में चल रहा है। कुत्ब' के सहायक 'अवताद' होते हैं जो 'बदल' की श्रेणी से उन्नति कर उक्त पद पर पहुँच जाते हैं । कुरब के नश्वर शरीर के उपरत होने पर अवताद में से एक उक्त पद पर आरूढ़ होता है और विश्वात्मा के रूप में संसार का संचालन करता है । इस प्रकार सूफियों की दृष्टि में 'वली' दूध-पूत, धन-धान्य सभी कुछ देता है और कुत्त्र संसार की रक्षा में मग्न रहता है। सूफियों ने पीरों का एक ऐसा मंडल बना लिया कि उससे फरिश्तों और नबियों की मर्यादा भंग हो गई। उन्होंने अपनी भावना की रक्षा इस अनूठे ढंग से की, पीरों को इतना महत्त्व दिया, वली को इतनी शक्ति दी, कुत्ब को इतना बढ़ाया कि उसके आलोक में रसूलता छिप गई और मुहम्मद साहब कुन्ब बन गए । इसलाम में पीर- परस्ती का नाम न था। सूफियों को कुरान में उसकी गंध मिली। देखते-देखते उनके सरस प्रयत्न से इसलाम के कोने कोने में पीरपरस्ती छा गई। मुहम्मद साहब को कहना पड़ा-.---"मैंने तुम्हे समाधि पर जाने की अनुमति नहीं दी थी; पर अब तुम समाधियों का दर्शन कर सकते हो; क्योंकि उनके दर्शन से तुम इस लोक को भूल जाते हो और तुम्हें परलोक का स्मरण हो पाता है।" प्रवाद है कि मुहम्मद साहब ने स्वतः अपनी माता की समाधि पर आँसू गिराए थे और कहा था कि मैंने अल्लाह के आदेश से समाधि की जियारत को । प्रवादों में सहसा विश्वास कर लेने को जी नहीं चाहता, पर इतना तो जरूर है कि समाधियों के दर्शन से अलौकिक (१) दी मिस्टिक्स आव इसलाम, पृ० १२४ । (२) दी फेथ भाव इसलाम, पृ० ३७४ । (३) दी फेथ श्राव इसलाम, पृ. ३७५ ।