पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/९१

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत का सामना तो है ही यह हमारे काम का है भी तो नहीं ? फिर हम इस चक्कर में क्यों पड़े ? हाँ, विज्ञ सूफी जहाँ प्रतीक, रूपक अथवा अन्योक्ति समझकर किसी तथ्य का रहस्योद्घाटन करते हैं वहाँ सामान्य जनता उसीको ठोस सत्य के रूप में ग्रहण करती और उसोपर जान देती है । अस्तु उसको पूर्ण विश्वास है कि उसके कर्मों की बही बन रही है। आगे उसको 'सिरात' के पुल पर चलना और अपने किए का शाश्वत फल भोगना है। उसकी धारणा है कि उस दिन रसूल और संत फकीर ही उसके काम आएंगे और उसकी ओर से अल्लाह से कुछ कह-सुनकर उसके लिये हुर, गिलमा, सुरा और नाना प्रकार के भोग-विलास की सामग्री जुट। देगे। रसूल की कृपा से मुसलिम को शाश्वत स्वर्ग मिलेगा। स्वर्ग एवं नरक पर विचारने के पहले निर्णय के दिन के अनूट दृश्यों की एक झाँकी ले लेनी चाहिए। इन दृश्यों में विज्ञानियों के लिये चाहे जितनी मनोरंजन की सामग्री हो. मोतजिलियों को इनकी सत्यता में चाहे जितना संदेह हो, संतों के लिये इनमें चाहे अन्योक्ति हो चाहे रूपक हो, चाहे कुछ भी क्यों न हो, पर साधारण जनता के जीवन का परिष्कार इन्हीं पर निर्भर रहा है और इन्हींके कारण उसमें मंगलाशा बँधती आ रही है । इसराफील के सिंहनाद को सुनते ही प्राणी जिस फल को भोगने के लिये जाग पड़ेगा उसका भावी भय ही इसलाम में योग-क्षेम का वाहक रहा है । उस दिन अल्लाह के कठोर दंड से रक्षा करनेवाला अपना दीन ही होगा। पर सूफियों की दृष्टि में अल्लाह के अलाल से उधारनेवाला रसूल या कोई संत ही हो सकता है। उस दिन मुसलमानों के लिये विशेष सुविधा होगी। उनको उस दिन उस कुंड का अभृत मिलेगा जिसको पी लेने से फिर कभी प्यास नहीं लगती। उनके लिये सिरात का पुल भयावह न होगा; उस पर वे आसानी से चल सकेंगे। कहा तो यहाँ तक जाता है कि मुसलिम किसी भी दशा में नित्य नरक का फल नहीं भोग सकता; अधिक से अधिक उसको उसका कष्ट देखना पड़ेगा। और अल्लाह का उस दिन प्रत्यक्ष दर्शन होगा । सूफी उसके दीदार में मग्न हो सायुज्य का फल भोगेंगे । सूफियों को अल्लाह के जमाल का पूरा भरोसा है। उनका कथन है कि स्वर्ग अल्लाह का जमाल और नरक उसका जलाल है। नरक में भी उसके प्रसाद