पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/९२

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प्रास्था 1 से खाज खुजलाने का मा सुख मिलेगा। सूफियों का प्रियतम कठोर बनता है पर वह किसी को सता नहीं पाता। अंत में वह जीवमात्र का निस्तार कर देता है। उसी की मर्जी से सब बातें होती हैं । इंसान करता ही क्या है कि उसे उसका फल भोगना पड़े। जिस क्षण खुदी मिटी उसी क्षण वह खुदा बना। अब उसके लिये स्वर्ग-नरक मुख-दुःख सभी आनंददायक खेल हो गए। परंतु अनुभूति की पराकाष्ठा एक बात है और सामान्य आस्था उससे भिन्न सर्वथा दूसरी बात । अतएव सूफी समाज अल्लाह के प्रत्यक्ष दर्शन में विश्वास रखता है। वह निर्णय, सिरात, तुला, स्वर्ग-नरक आदि पर ईमान रखता और शरीअत का बहुत कुछ साथ देता है सालिक सूफियों की आस्था का परिशीलन हो चुका । सामान्यतः उनको मुस- लिम प्रास्था से प्रेम है और वे उसको प्रशस्त मानते हैं। पर सूफियों में कतिपय आजाद तबीअत के जीव होते हैं जो जन्मांतर और आवागमन तक में विश्वास रखते हैं। म्वतः इसलाम में एक संप्रदाय ऐसा उत्पन्न हो गया था जो आवागमन को मानता था। मौलाना कमी ने जिस क्रमिक विकास के आधार पर यह घोषणा की है कि मरने से क्रमशः उन्नत योनि प्राप्त होती है वह आवागमन से मुक्त नहीं कहा जा सकता । उनके कहने का तात्पर्य है कि जीव क्रमशः बनस्पति, पशु आदि योनियों से उन्नत हो मनुष्ययोनि में जन्म लेता है। उसके निधन का अर्थ नवीन उत्तम जीवन है । मरण से उसे जब उत्तम योनि प्राप्त होती है तब मनुष्य भी मर• कर कुछ श्रेष्ट ही बनेगा। उमर खय्याम भी जन्मांतर में विश्वास करता था। कहने का तात्पर्य यह कि आवागमन और जन्मांतर में विश्वास रखने वाले जीव भी सूफियों में अनेक हो गए हैं। पर सामान्यतः सूफी आवागमन का हामी नहीं, कया- मत का कायल है । सूफी-साहित्य में कहीं कहीं लिंग-शरीर का भी संकेत मिलता (१) परेबियन सोसाइटी एट दी टाइम भाव मोहन्मद, पृ० १६० । (२) एसंशियल यूनिटी पाव आल दी रेलिजन्स, पृ० ८७ । (३) ए लिटरेरी हिस्टरी आव पर्शिया, प्रथम भाग, पृ० २५४ । (४) एन आइडियलिस्ट न्यू आव लाइफ, पृ० २८६ ।