पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/९४

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५. साधन किसी भी मत के साधन साध्य के द्योतक नहीं साधक के परिचायक होते हैं। साध्य की सिद्धि के लिये साधक जिन साधनों का उपयोग करता है उनमें देशकाल की गहरी छाप होती है। किसी भी दशा में यह संभव नहीं कि परिस्थितियों की अवहेलना कर हम आगे बढ़े और उनसे बाल-बाल बच जायें । अस्तु, प्रकृति और परिस्थिति के मेल से ही हम लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। उनमें से किसी की भी उपेक्षा कर हम फल-फूल नहीं सकते। वास्तव में प्रकृति हमारी जननी है तो परिस्थिति हमारी धात्री, हम एक के औरस तो दूसरे के पोष्य हैं। प्रकृति से हम बहुत कुछ अनभिज्ञ रह सकते हैं । पर परिस्थिति का ध्यान हमें सदा रखना ही पड़ता है। प्रकृति की ममता हम पर सदा बनी रहती है । पर परिस्थिति जरा भी चूकने पर हमें टुकरा देती है । तसव्वुफ के जीवन में भी प्रकृति एवं परिस्थिति का यह विभेद स्पष्ट लक्षित होता है। सूफीमत की प्रकृति के संबंध में फिर कभी विचार किया जायगा । यहाँ हमें तसव्वुफ के उन साधनों का परिचय प्राप्त करना है जिनका उसने अपनी प्रकृति के अनुसार अवलंबन लिया और जिन्हें अपनी परि- स्थिति के अनुकूल बनाया । तसव्वुफ को जिस परिस्थिति का सामना करना पड़ा वह मुसलिम संस्कारों से ओतप्रोत थी । निदान सूफियों को कुछ इसलामी कायदों की पाबंदी करनी ही पड़ी। मुसलिम परिधान में सूफियों ने इसलाम को अपने अनुकूल ही नहीं बनाया, उसके मुख्य मुख्य अंगों पर अपनी छाप भी लगा दी। धीरे धीरे परिस्थिति भी उनकी मुट्ठी में आ गई और उन्होंने अपना जौहर खुलकर अच्छी तरह दिखा दिया। मुहम्मद साहब ने इसलाम की जो परिभाषा की, उसमें तौहीद के अतिरिक्त सलात, जकात, सौम एवं हज का विधान था। इसलाम के इस रूप पर जम कर विचारने से प्रकट होता है कि तौहीद साध्य एवं शेष सब साधन मात्र हैं। इन