पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/९९

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८२ तसव्वुफ अथवा सूफीमत हुई। मैंने दीनता और संपन्नता दोनों को त्याग दिया। मेरे इस दीनता और संपन्नता के त्याग ने मेरी योग्यता का विश्वास दिलाया। मैंने योग्यता की भी उपेक्षा की। मेरी इस उपेक्षा में मेरे धैय का उदय हुआ।" सारांश यह कि जकात में त्याग का संकेत पा सूफियों ने त्याग की ऐसी धारा बहा दी जिसमें इसलाम के सारे ध्येय बह गये। सूफियों ने जीविका के लिये भी काम या कुछ अर्जन करना छोड़ दिया। इसलाम में 'कस्ब' और 'तवक्कुल' का विवाद छिड़ा। सूफ़ी अपनी धुन में मस्त रहे । उनके पास जो कुछ था, सब अल्लाह को अर्पित कर दिया। उन्होंने अपने आप तक को उस प्रियतम के नाम वक्फ कर दिया। सूफी की साधु-दृष्टि में जकात समर्पण से कम नहीं । हज एवं जकात के पुण्य निर्धनों को नसीब नहीं ; उनको तो बस सौम एवं सलात का भरोसा है । सत्त्वशुद्धि के विधानों में सौम का मूल्य सम्भवतः और सभी स्तंभों से अधिक है। उपवास की विधि परंपरागत हैं। मुहम्मद साहब ने कुछ परिवर्तन के साथ उसको इसलाम का अंग बना दिया। रमजान इसलाम का वह मास है जिसमें कुरान का अवतरण, मुहम्मद साहब का उत्कर्ष एवं विरोधियों का पतन हुआ। अतः वह सौम का पर्याय बन गया। फारसी मे सौम् ही को रोजा कहते हैं ।रोजा, सौम आर रमजान पर्याय भी हो गए हैं। सौम में सूफियों को उपासना का ढंग मिला। उन्हें प्रियतम के वियोग में तपना भाने लगा। भजन उनका भोजन हो गया। उनमें उपवास का इतना श्रादर बढ़ा कि उनके प्रताप का परिचायक तप ही समझा गया। उनमें (१) स्टडीज इन इसलामिक मिस्टीसीज्म, पृ० २१५-६ । (२) कस्व और तवक्कुल का तात्पर्य है कर्म और ईश्वर पर जोर देना । जो लोग कस्ब का पक्ष लेते हैं उनका कहना है कि भक्तों को भी कर्म करना चाहिए । रामभरोसे पर पड़ा रहना ठीक नहीं । तवक्कुल के पक्षपाती कर्भ पर जोर नहीं देते। उनके विचार में परमात्मा पर पूरा भरोसा रखने से सब काम अपने आप हो जाते है । सब की चिता खुदा खुद करता है। बंदे का पेट के लिए किसी धंध में फँस जाना ठीक नहीं।