हृदय जला जा रहा है। मैं जानता हूं कि चौबे ही इसकी जड़ में है, पर क्या करूं, लोक-लाज और अपना कलंक मेरा गला घोट रहा है।
रामजस ने अपनी लाठी पटकते हुए कहा—ब्याह करके तुम कायर हो गए हो, यह नहीं कहते। स्त्री का मोह हो रहा है। सुखदेव को तो मैं उसी दिन समझ गया था कि बह पड़ा पाजी है, जब वह मां के मरने में ज्योनार देने के लिए बहुत-कुछ कह रहा था। उस नीच को मालूम था कि मेरा भाई पथ्य के लिए भूखों मर गया। और मां दरिद्रता की उस घोर पीड़ा और अभिमान के कारण पागल होकर मर गई। परंतु वह श्रद्धा के अवसर पर बड़ी-सी ज्योनार देने के लिए निर्लज्जता से हठ करता रहा। ऐसे ढोंगी को तो वहीं मार डालना चाहता था। पाजी जब मेरे खेत के लिए नीलामी की बोली बोलने आया था तब नहीं जानता था कि मेरे पास कुछ नहीं है। मुझे धर्म और परलोक का पाठ पढ़ाता था। मैं तो अब कलकत्ते नहीं जाता। देलूं कौन मेरा खेत काटता है। मैं तो आज से प्रतिज्ञा करता हूं कि बिना इसका सिर फोड़े नहीं जाता। पैसे के बल पर धर्म और सदाचार का अभिनय करना भुलवा दूंगा! मैंने जो कुछ पढ़ा-लिखा है, सब झूठा था। आज-कल क्या, सब युगों में लक्ष्मी का बोलबाला था। भगवान भी इसी के संकेतों पर नाचते हैं। मैं तुम्हारी इस झूठे पाप-पुण्य की दुहाई नहीं मानता।
तुम ठहरो रामजस! इस दरिद्रता का अनिवार्य कुफल लोग समझने लगे हैं, देखते नहीं हो, गांव में संगठन का काम चलाने के लिए मिस शैला कितना काम कर रही हैं। सबका सामूहिक रूप से कल्याण होने में विलम्ब है अवश्य, परंतु उसे अपनी उच्छृंखलताओं से अधिक दूर करने से तो कुछ लाभ नहीं। मैं कायर हूं, डरपोक हूं, मुझे मोह है, यह सब तुम कह रहे हो केवल इसलिए कि मुझे भविष्य के कल्याण से आशा है। मैं धैर्य से उसकी प्रतीक्षा करने का पक्षपाती हूं।
मैं यह सब मानता। पेट के प्रश्न को सामने रखकर शक्ति-संपन्न पाखंडी लोग अभाव-पीड़ितों को सब तरह के नाच नचा रहे हैं। मनुष्य को अपनी वास्तविकता का जैसे ज्ञान नहीं रह गया है। तब यह सब बातें सुनने के योग्य नहीं रह जातीं। प्रभुत्व और धन के बल पर कौन-कौन से अपराध नहीं हो रहे हैं। तब उन्हीं लोगों के अपराध-अपराध चिल्लाने का स्वर दूसरे गांव में भटक कर चले आने वाले नए कुत्ते के पीछे गांव के कुत्तों का-सा है। वह सब मैं सुनते-सुनते ऊब गया हूं मधुबन भइया! मधुबन ने गंभीर होकर कहा—तुम्हारे खेत की फसल नीलाम हो चुकी है। अब तुम उसे छुओगे तो मुकदमा चलेगा। चलो तुम बनजरिया में रहो। फिर देखा जाएगा।
होठ बिचकाकर रामजस ने जैसे उसकी बातों को उड़ाते हुए हंस दिया। फिर ठहरकर उसने कहा—अच्छा आज तो मैं अपने खेत का हाबुस भूनकर खाऊंगा। फिर कल, यहां रहना होगा तो बनजरिया में ही आकर रहूंगा।
रामजस चला गया, परंतु मधुबन के हृदय पर एक भारी बोझ डालकर। वह बाबा रामनाथ की शिक्षा स्मरण करने लगा—मनुष्य के भीतर जो कुछ वास्तविकता है, उसे छिपाने के लिए जब वह सभ्यता और शिष्टाचार का चोला पहनता है तब उसे संभालने के लिए व्यस्त होकर कभी-कभी अपनी आखों में ही उसको तुच्छ बनना पड़ता है।
मधुबन के सामने ऐसी ही परिस्थिति थी। रामनाथ के महत्त्व का बोझ अब उसी के