पृष्ठ:तितली.djvu/१८

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मात्र रह गया था, सो भी दूर की ऊंची हरियाली के नीचे जाना ही चाहता था। इन्द्रदेव अभी तक नहीं आए थे। चाय ले जाने में चौबेजी और सुस्ती कर रहे थे। उनकी चाय शैला को बड़ी अच्छी लगी। वह चौबेजी के मसाले पर लटू थी। रामदीन ने चाय की टेबिल लाकर रख दी। शैला की तन्मयता भंग हुई। उसने मुस्कुराते हुए, इन्द्रदेव से कुछ मधुर सम्भाषण करने के लिए, मुंह फिराया; किंतु इन्द्रदेव को न देखकर वह रामदीन से बोली—क्या अभी इन्द्रदेव नहीं आए हैं? नटखट रामदीन हँसी छिपाते हुए एक आंख का कोना दबाकर होंठ के कोने को ऊपर चढ़ा देता था। शैला उसे देखकर खूब हँसती, क्योंकि रामदीन का कोई उत्तर बिना इस कुटिल हंसी के मिलना असंभव था! उसने अभ्यास के अनुसार आधा हंसकर कहा—जी, आ रहे हैं सरकार! बड़ी सरकार के आने की... बड़ी सरकार? हां, बड़ी सरकार! वह भी आ रही हैं। कौन है वह? बड़ी सरकारदेखो रामदीन, समझाकर कहो। हंसना पीछे। बड़ी सरकार का अनुवाद करने में उसके सामने बड़ी बाधाएं उपस्थित हुईं; किंतु उन सबको हटाकर उसने कह दिया—सरकार की मां आई हैं। उनके लिए गंगा-किनारे वाली छोटी कोठी साफ़ कराने का प्रबंध देखने गए हैं। वहां से आते ही होंगे। आते ही होंगे? क्या अभी देर है? रामदीन कुछ उत्तर देना चाहता था कि बनारसी साड़ी का आंचल कंधे पर से पीठ की ओर लटकाए: हाथ में छोटा-सा बेग लिये एक संदरी वहां आकर खड़ी हो गई। शैला ने उसकी ओर गंभीरता से देखा। उसने भी अधिक खोजने वाली आंखों से शैला को देखा। दृष्टि-विनियम में एक-दूसरे को पहचानने की चेष्टा होने लगी; किंतु कोई बोलता न था। शैला बड़ी असुविधा में पड़ी। वह अपरिचित से क्या बातचीत करे? उसने पूछाआप क्या चाहती हैं? आने वाली ने नम्र मुस्कान से कहा—मेरा नाम मिस अनवरी है। क्या किया जाए, जब कोई परिचय कराने वाला नहीं तो ऐसा करना ही पड़ता है। मैं कुंवर साहब की मां को देखने के लिए आया करती हूं। आपको मिस शैला समझ लूं? ___जी—कहकर शैला ने कुर्सी बढ़ा दी और शीतल दृष्टि से उसे बैठने का संकेत किया। उधर चौबेजी चाय ले आ रहे थे। शैला ने भी एक कुर्सी पर बैठते हुए कहा-आपके लिए भी... अनवरी और शैला आमने-सामने बैठी हुई एक-दूसरे को परखने लगी। अनवरी की सारी प्रगल्भता धीरे-धीरे लुप्त हो चली। जिस गर्मी से उसने अपना परिचय अपने-आप दे दिया था, वह चाय के गर्म प्याले के सामने ठंडी हो चली थी। शैला ने चाय के छोटे-से पात्र से उठते हुए धुएं को देखते हुए कहा—कुंवर साहब की मां भी सुना, आ गई हैं?