पृष्ठ:तितली.djvu/७०

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इंद्रदेव, उपास्य को जानने के लिए उद्विग्न हो गए थे। वह पूछना ही चाहते थे कि बीच में टोककर शैला ने कहा—और मुझे क्षमा भी मांगनी है।

किस बात की?

मैं यहां बैठी थी, अनिच्छा से ही अकेले बैठे-बैठे तुम्हारी डायरी के कुछ पृष्ठ पढ़ लेने का अपराध मैंने किया है।

तब तुमने पढ़ लिया? अच्छा ही हुआ। यह रोग मुझे बुरा लग रहा था—कहकर इंद्रदेव ने अपनी डायरी फाड़ डाली!

किंतु उपास्य को पूछने की बात उनके मन में दब गई।

दोनों ही हंसकर विदा हुए।

 


9.

बनजरिया का रूप आज बदला हुआ है। झोंपड़ी के मुंह पर चूना, धूल-भरी धरा पर पानी का छिड़काव, और स्वच्छता से बना हआ तोरण और कदली के खम्भों से सजा हा छोटासा मंडप, जिसमें प्रज्वलित अग्नि के चारों ओर बाबा रामनाथ, तितली, शैला और मधुबन बैठे हुए हवन-विधि पूरी कर रहे थे। दीक्षा हो चुकी थी। रामनाथ के साथ शैला ने प्रार्थना की-

'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतंगमय।'

एक दरी पर सामने बैठे हए मिस्टर वाटसन. इंद्रदेव. अनवरी और सखदेव चौबे चकित होकर यह दृश्य देख रहे थे। शैला सचमुच अपनी पीली रेशमी साड़ी में चम्पा की कली-सी बहुत भली लग रही थी। उसके मस्तक पर रोली का अरुण बिंदु जैसे प्रमुख होकर अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर रहा था। किंतु मधुबन और तितली भी पीले रेशमी वस्त्र पहने हुए थे। तितली के मुख पर सहज लज्जा और गौरव था। मधुबन का खुला हुआ दाहिना कंधा अपनी पुष्टि में बड़ा सुंदर दिखाई पड़ता था। उसका मुख हवन के धुएं से मजे हुए तांबे के रंग का हो रहा था। छोटी-मूछे कुछ ताव में चढ़ी थीं। किसी आने वाली प्रसन्नता की प्रतीक्षा में औखें हंस रही थीं। वही गंवार मधुबन जैसे आज दूसरा हो गया था! इंद्रदेव उसे आश्चर्य से देख रहे थे और तितली अपनी सलज्ज कांति में जैसे शिशिर-कणों से लदी हुई कुंदकली की मालिका-सी गंभीर सौंदर्य का सौरभ बिखेर रही थी। इंद्रदेव उसको भी परख लेते थे।

उधर मिस्टर वाट्सन शैला को कुतूहल से देख रहे थे। मन में सोचते थे कि 'यह कैसा है?' शैला के चारों ओर जो भारतीय वायुमंडल हवन-धूम, फूलों और हरियाली की सुगंध में स्निग्ध हो रहा था, उसने वाट्सन के हृदय पर से विरोध का आवरण हटा दिया था; उसके सौंदर्य में वह श्रद्धा और मित्रता को आमंत्रित करने लगा। उन्होंने इंद्रदेव से पूछा-कुंवर साहब! यह जो कुछ हो रहा है, उसमें आप विश्वास करते हैं न?