पृष्ठ:तितली.djvu/७४

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संपूर्ण चेतनता से मधुबन ने कहा—हां?

और तुम तितली?

मैं भी।

उसका नारीत्व अपने पूर्ण अभिमान में था।

अनवरी झल्ला उठी। सुखदेव दांत पीसकर उठ गए। तहसीलदार मन-ही-मन बुदबुदाने लगे। वाट्सन मुस्कुराकर रह गए। शैला ने गंभीर स्वर में इंद्रदेव से कहा—अब आप लोगों से यह नवविवाहित दंपती आशीर्वाद की आशा करता है। और मैं समझती हूं कि यहां का काम हो चुका है। अब आप लोग नील-कोठी चलिए। अस्पताल खोलने का उत्सव भी इसी समय होगा और तितली के ब्याह का जलपान भी वहीं करना होगा। सब लोग मेरी ओर से निमंत्रित हैं।

इंद्रदेव ने सिर झुकाकर जैसे सब स्वीकार कर लिया। और वाट्सन ने हंसकर कहामिस शैला! मैं तुमको धन्यवाद पहले ही से देता हूं।

सिंदूर से भरी हुई तितली की मांग दमक उठी।



10.

नील-कोठी में अस्पताल खुल गया। बैंक के लिए भी प्रबंध हो गया। वहीं गांव की पाठशाला भी आ गई थी। वाट्सन ने चकबंदी की रिपोर्ट और नक्शा भी तैयार कर दिया और प्रांतीय सरकार से बुलावा आने पर वहीं लौट गए। साथ-ही-साथ अपने सौजन्य और स्नेह से पुर के बहुत-से लोगों के हृदयों में अपना स्थान भी बना गए। शैला उनके बनाए हुए नियमों पर साधक की तरह अभ्यास करने लगी।

अभी भी जमींदार के परिवार पर उस उत्सव की स्मृति सजीव थी। किंतु श्यामदुलारी के मन में एक बात खटक रही थी। उनके दामाद बाबू श्यामलाल उस अवसर पर नहीं आए। इंद्रदेव ने उन्हें लिखा भी था; पर उनको छुट्टी कहां? पहले ही एक बोट पर गंगा-सागर चलने के लिए अपनी मित्र-मंडली को उन्होंने निमंत्रित किया था। कुल आयोजन उन्हीं का था। चन्दा तो सब लोगों का था; किंतु किसको ताश खेलना है, किसे संगीत के लिए बुलाना है और कौन व्यंग्य-विनोद से जुए में हारे हुए लोगों को हंसा सकेगा, कौन अच्छी ठंडाई बनाता है, किसे बढ़िया भोजन पकाने की क्रिया मालूम है यह तो सभी को नहीं मालूम था। श्यामलाल के चले आने से उनकी मित्र-मंडली गंगा-सागर का पुण्य न लूटती। वह आने नहीं पाए।

तहसीलदार और चौबेजी जल उठे थे तितली के ब्याह से। जो जाल उनका था, वह छिन्न हो गया। शैला के स्थान पर जो पात्री चुनी गई थी, वह भी हाथ से निकल गई। उन्होंने श्यामदुलारी के मन में अनेक प्रकार से यह दुर्भावना भर दी कि इंद्रदेव चौपट हो रहे हैं और हम लोग कुछ नहीं कर सकते। शैला को घर से तो हटा दिया गया; पर वह एक पूरी शक्ति इकट्ठी करके उन्हीं की छाती पर जम गई।