उछलकर मधुबन को कंधे पर बिठा लिया।
श्यामलाल का मुंह तो उतर गया, पर उन्होंने अपनी उंगली से अंगूठी निकालकर, मधुबन को देने के लिए बढ़ाई। मधुबन ने कहा—मैं इनाम का क्या करूंगा—मेरा तो यह व्यवसाय नहीं है। आप लोगों की कृपा ही बहुत है।
श्यामलाल कट गए। उन्हें हताश होते देखकर एक वेश्या ने उठकर कहा—मधुबन बाबू! आपने उचित ही किया। बाबूजी तो हम लोगों के घर आए हैं, इनका सत्कार तो हम ही लोगों को करना चाहिए। बड़े भाग्य से इस देहात में आ गए हैं न!
श्यामलाल जब उसकी चंचलता पर हंस रहे थे, तब उस युवती मैना ने धीरे से अपने हाथ का बौर मधुबन की ओर बढ़ाया, और सचमुच मधुबन ने उसे ले लिया। यही उसका विजय-चिन्ह था।
तहसीलदार जल उठा। वह झुंझला उठा था, कि एक देहाती युवक बाबू साहब को प्रसन्न करने के लिए क्यों नहीं पटका गया। उसे अपने प्रबंध की यह त्रुटि बहुत खली। छावनी के आंगन में भीड़ बढ़ रही थी। उसने कड़ककर कहा—अब चुपचाप सब लोग बैठ जाएं। कुश्ती हो चुकी। कुछ गाना-बजाना भी होगा।
श्यामलाल को यह अच्छा तो नहीं लगता था, क्योंकि उनका पहलवान पिट गया था; पर शिष्टाचार और जनसमह के दबाव से वह बैठे रहे। अनवरी बगल में बैठी हई उन पर शासन कर रही थी। माधुरी भीतर चिक में उदासभाव से यह सब उपद्रव देख रही थी। श्यामदुलारी एक ओर प्रसन्न हो रही थीं, दूसरी ओर सोचती थीं।—इंद्रदेव यहां क्यों नहीं है।
जब मैना गाने लगी तो वहां मधुबन और रामजस दोनों ही न थे। सुखदेव चौबे तो न जाने क्यों मधुबन की जीत और उसके बल को देखकर कांप गए। उसका भी मन गाने-बजाने में न लगा। उन्होंने धीरे से तहसीलदार के कान में कहा—मधुबन को अगर तुम नहीं दबाते, तो तुम्हारी तहसीलदारी हो चुकी। देखा न!
गंभीर भाव से सिर हिलाकर तहसीलदार ने कहा—हूं।
2.
धूप निकल आई है, फिर भी ठंड से लोग ठिठुरे जा रहे हैं। रामजस के साथ जो लड़का दवा लेने के लिए शैला की मेज के पास खड़ा है, उसकी ठुड्डी कांप रही है। गले के समीप कुर्ते का अंश बहुत-सा फटकर लटक गया है, जिससे उसकी छाती की हड्डीयों पर नसें अच्छी तरह दिखायी पड़ती हैं।
शैला ने उसे देखते ही कहा—रामजस! मैंने तुमको मना किया था। इसे यहां क्यों ले आए? खाने के लिए सागूदाना छोड़कर और कुछ न देना! ठंड से बचाना!
मेम साहब, रात को ऐसा पाला पड़ा कि सब मटर झुलस गई। हरी मटर शहर में बेचने के लिए जो ले जाते तो सागूदाना ले आते। अब तो इसी को भूनकर कच्चा-पक्का खाना