पृष्ठ:तिलस्माती मुँदरी.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३०
तिलिस्माती मुँदरी


ज़ोर से कांव कांव कर गुल मचा रहे हैं कि “शेर शेर, जागो जागो!" तोते ने कहा-"कंजरों को जगा दे, नहीं तो शेर अभी हम सब के ऊपर आ जायगा"। राजा की लड़की झट उठ खड़ी हुई और जितने ज़ोर से उससे हो सका चिल्लाने लगी-"शेर शेर, जागो जागो!" और कंजर जल्द जाग गये।

इस वक्त राजा की लड़की ने शेर की आंखों को एक झाड़ी के नीचे से चमकते हुए देखा, मगर जैसे ही वह उसके ऊपर झपटने को हुआ, एक कंजर ने एक झूठा सूखे सरकंडों का चूल्हे से जला कर शेर के मुंह पर फेंक दिया जिससे कि वह ऐसा डर गया कि बड़ी आवाज़ से गरजता हुआ उलटा भाग गया और मैदान में कुलांच मारता हुआ थोड़ी ही देर में नज़रों से गायब हो गया।

दूसरे दिन उन्होंने उस बन को छोड़ एक बयाबान में पैर रक्खा और उसी रास्ते दिन भर चले। वहां कोई जानवर या पेड़ न मिला, क्योंकि वह बड़ा भारी रेत का मैदान था जिसे रेगिस्तान कहते हैं और जाबजा ऊंट और घोड़ों की और एक मुक़ामा पर आदमी की ठटरियां रेत में आधी गड़ी हुई देखने में आई! वह जहां तक उनसे हो सका तेज़ी से चले क्योंकि जानते थे कि करीब से करीब कुआ भी उनसे बहुत दूर है और उस पर न पहुँचे तो ज़रूर प्यास से मर जायंगे। उन्हें पहले ही बहुत प्यास लगी हुई थी और बेचारे गधे भी मारे प्यास के घबरा रहे थे कि एक ताड़ के पेड़ों का झुंड दूर नज़र आया और बुढ़िया कंजरी ने राजा की बेटी से कहा कि खुश होवे क्योंकि कुआ उन्हीं पेड़ों के नीचे है। गधे भी समझ गये मालूम होते थे कि कुआ पास है, क्योंकि उन्हों ने अपने कान ऊंचे कर लिये और रेंकने और तेज़ कदम चलने लगे। लेकिन वहां तक पहुँचने में देर लगी और पहुँचने