पृष्ठ:तिलस्माती मुँदरी.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५४
तिलिस्माती मुँदरी


उससे कीना रखती थी-दो सिपाही उसे उसकी बदज़ाती की सज़ा देने के लिए लिये जाते थे, हालांकि दारोग़ा ने वह सज़ा बेइंसाफ़ी से दी थी।


अध्याय ८

राजा की लड़की मीनार में जहां कि काली लौंडी उस के हाथ पैर बांध कर उसे पड़ा छोड़ गई थी सिपाही का जो न मिली उसका किस्सा यों है-जिस वक्त वह बेबसी की हालत में कोठड़ी के अन्दर पड़ी हुई थी उसे उस सूराख़ में जिसमें से कि वह दयादेई की खिड़की को देखा करती थी दो बड़ी २ आंखें चमकती हुई दिखाई दीं। पहले तो वह डर गई लेकिन पीछे से वह फ़ौरन समझ गई कि दीवार पर बाहर जो बेल लिपटी हुई थी उसकी एक शाख पर बैठा हुआ, वह उल्लू जो कि मीनार की चोटी पर निगहबानी के लिये मुक़र्रिर था, सूराख़ से भीतर को देख रहा है। उसे उस वक्त अपनी तिलिस्माती अंगूठी की याद आई और जिस हाथ की उंगली में वह उस्को पहने हुए थी वह हाथ किसी तरह उल्लू की तरफ़ करके अंगूठी को उसकी नज़र के सामने कर दिया और उससे कहने लगी-“ऐ उल्लू, इस अंगूठी के लिहाज़ से इस वक्त मेरो मदद कर"-उल्लू ने जैसे ही अंगूठी को देखा और उसकी बात को सुना वह लड़की की खिदमत में अन्दर हाज़िर हुआ और बोला "क्या हुक्म है?" लड़की ने कहा- "मेरे हाथों और पैरों को खोल दे, अगर खोल सके तो"-उल्लू कपड़े के बन्धनों को जिनसे कि वह जकड़ी हुई थी खोल नहीं सकता था लेकिन उसने अपनी नुकीली चोंच और पैने पंजों से उन्हें फाड़ डाला, उसके ऐसा करने से मजबूरन लड़की को कुछ ज़ख़्म आ गई जिस से उसकी चादर के