पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१००

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गजापुर के तुलसीदास SE लिए सेना रखने को २० लाख रुपये की जागीर देने का वचन दिया और कुछ इलाका भी इसकी जागीर में छोड़ दिया। इससे इसका राज्य इलाहाबाद से कालपी तक हो गया । [वही, पृष्ठ २८४] अस्तु, झाँसी से अवध तक जो 'गोसाई' की दौड़ लगी है और 'कालपी' से 'इलाहावाद' तक जो 'गोसाई' को 'जागीर' मिली है वह पुकार कर कहती है कि राजापुर के प्रसंग में कृपया इस गोसाई को न भूलें और कृपा कर यहीं टाँक लें इतना और भी कि 'चरित्र' के वचनानुसार जब कवि गंग को अपने किए का फल मिल गया तव- ताहि समै दिल्ली सुलताना | लागि जो लियौ हुतो बरदाना । दरस हेतु आयौ सचु पायौ । अति भेटा सादर सिर नायौ । दीन बचन मृदु वानी भाखी । वह संपदा विहित तिन राखी । नगर बनारस को चहिय, लिखि फागद पर दाम | अंगिकार प्रभु कीजिए, आवै दासन काम || फह्यौ कि मै तुम 4 प्रथम, कही हुती जो वात । सत्य सबै सोइ जानिये, यामें पाँच न सात |॥२॥ अर्ब खर्च लौं द्रव्य है, उदय अस्त लौं राज । तुलसी जो निजु मरन है, तो सब फौने काज ||३|| [चरित्र, पृष्ठ १२१-२] अतएव हमारी स्थापना है कि प्रस्तुत प्रमाणों के आधार पर गिरि-गोसाई '. यह सिद्ध ठहरता है कि वास्तव में राजापुर के उक्त उपाध्याय वंश का संबंध है इस 'गिरि-गोसांई से कुछ महात्मा तुलसीदास से कदापि नहीं ::::