पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१०१

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६० तुलसी की जीवन-भूमि माफी, फरमान, सनद, पट्टा या जो कुछ कहें उस सब कुछ की छान-चीन से हमने देख लिया कि उक्त अयोध्याकांड 'गोसाई' जी तो कुछ और ही सिद्ध हुए जा रहे हैं । अब देखना यह रहा कि वहाँ के उस कांड का रहस्य क्या है जिसके विपय में आज बड़े अभि- मान से कहा गया है- गोस्वामी जी ने अपने हाथों से रामचरितमानस की प्रतियाँ लिखी थी जिसकी एक प्रति ( अवशिष्ट अयोध्याकांड ) आज भी राजापुर में उनके उत्तराधिकारी शिष्य के वंशजों के वहाँ सुरक्षित रखी है। यहाँ तक तो रही भूमिका | अब आगे का इतिहास है- इस समय यह पुस्तक केवल अयोध्याकांड ही शेप है। शेप जलमग्न हो गई है। इसके विषय में प्रामाणिक जनश्रुति इस प्रकार है- गो. जी की हस्तलिखित रामायण के दर्शनार्थ अनेक राजा महा. राजा पदाधिकारी भावुक भक्त साहिस्थिक अन्वेपक आदि आया करते हैं। और यथासाध्य पुष्पांजलि के रूप में कुछ दक्षिणा भी चढ़ाते हैं । उस समय यह पुस्तक मंदिर (तुलसीदास की कच्ची कुटी) में रहा करती थी। लोभवश या अन्य किसी अज्ञात कारण से पुजारी एक दिन रामायण (संपूर्ण) लेकर रफूचक्कर हुआ। गोस्वामी जी के शिष्यों को रात में स्वप्न हुआ कि 'पुजारी पुस्तक धुरा कर भाग गया।' उन लोगों ने प्रातःकाल पुजारी को पकड़ने के लिए घोड़े से आदमी दौड़ाए । जिस समय पुजारी पुस्तक लिए हुए नाव पर बैठ कर गंगा पार कर रहा था ठीक उसी समय नाव लौटाने के लिए भेजे हुए आदमियों ने मल्लाह को पुकारा । पुजारी समझ गया और रामायण को गंगा जी के मध्य में छोड़ दिया । यह समाचार कालाकांकर के राजा