पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६४ तुलसी की जीवन-भूमि इसमें तो संदेह नहीं कि उक्त 'भगत जी को पोथी का यह रूप उक्त प्रकाशन, संवत् १८९६, से पहले पाठमेद का कारण ही प्राप्त हो गया होगा और फलतः उक्त क्या? माथुर जी को इसके और पहले 'राजापुर' जाना पड़ा होगा। स्वयं भगत जी ने राजापुर जाने का कष्ट क्यों नहीं किया ? यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। समाधान में कदाचित् कहा जा सकता है इसका प्रधान कारण है- उनको भनेक रुपैये के साध्या और शारीरकी सेवा कर को । का भगत जीके यहाँ सर्वथा अभाव । परंतु क्या यह पर्याप्त भी होगा ? हो वा न हो, किंतु इतना तो प्रकट ही है कि इस प्रकार रामचरितमानस का एक ऐसा मुद्रित संस्करण प्राप्त हो गया जो अपने को राजापुर का शुद्ध पाठ घोपित करता है। परंतु आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि इसके तथा राजापुर के वर्तमान अयोध्याकांड के पाठ में साम्य नहीं । सो क्यों ? समाधान कुछ भी हो, परंतु इतना प्रकट रहे कि इसमें प्रत्यक्ष ही कहा गया है कि- राजापुर परगने में जाय को श्री गोस्वामीजी के वंश की प्रजा वास करती हैं। तो फिर इस 'वंश की प्रजा' का अर्थ क्या ? क्या इसमें उक्त गोसाई राज्य की झलक नहीं ? जो हो, कहना अभी यह है कि इस लेख के पहले का अभी कोई ऐसा रघुराज सिंह का प्रमाण उपलब्ध नहीं जिससे राजापुर से उल्लेख तुलसीदास का संबंध जुटता हो। हाँ, रीवाँ-नरेश श्री रघुराज सिंह जी ने तुलसीदास को राजापुर का वासी अवश्य कहा है। किंतु