पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१११

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af मुलगी पी जीयन-भूमि अंगरेजी रूपरी पाटामा रही पान न परों लवामा । नागा को कहा था। रामदूरा हम नाहिं मेरा। यमिक परज्यो तिन फाई। आप, लरुरी भय नाही। वरच्या साहेब के नारामी नागा दीन्यो मारि निफागी । चपरासी सगोत्र फिरियादे धार पफान हेतु पयादे। मताधि पपारि गर है यौदा । मोल्यो माय भाति मदमादा ! चपरासी गाणी करितु । खनि है नुव नाल निन। भजा परयो एम टु नहि जाने । गुरति मानन राम मन मानें। तम फरमी ते तुरत उठि, साहय मोय अचेत । मारन पायो मतः फो, लै पर में यफ ॥३॥ तेहि क्षण तादि परकि फोनदीना पर ग्रंश भूमि दुम भीना। बीची रोपन लगी पुकारी हाय हाय भो समा मसारी । परी भागपत पग म मीची पोन र उदारमनायी। भक्त पायो साव नहिं मरि है । जो प्रविधाल साधुको करिहे। साहेब उठ्यो दंड दुइ माहीं । दोउ कर गाहो भन्न पद काहीं। पुनि फोन्यो अतिशय मलारा | चंदा फार धन दियो अपारा। भक्त लौटि राजापुर आए । साधुन के उर आनंद जाए। वनु दशशत चौरासी नाला धनुपयश तब फियो विशाला। तामें अनुभव फियो महाना । मुकुट तेन तिनको दरशाना। तब ते राम ल्प नित करहीं। फरि शॉफी आनंद उर भरहीं। [मत्तमाला, पृ. १०६६-७] भक्तराज' के इस 'चरित्र' में हमने जो कुछ पढ़ा है यह है कि यहीं से सरकारी चंदे से कुछ राजापुर में होने की नींव पड़ी। आश्चर्य नहीं यदि किसी दिन फहीं यह राजापुर पर साहिनी पढ़ने को मिल जाय कि वास्तव में भक्त दृष्टि राज छीतद्वास ही आज राजापुर के तुलसी