पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/११४

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राजापुर के तुलसीदास कहती है कि तुलसीदास का परिचय राजापुर से टस महेवा गाँव के एक ब्राह्मणं घर में विवाह के कारण हुआ 'लो तहसील सिराथू जिला इलाहावाद में है । राजापुर में कुछ ऐसी विचिन्न प्रथाएँ प्रचलित हैं जो तुलसीदास के उपदेशों से निकली हैं। कोई भी प्रत्यर या ईट का मकान बनाने नहीं पाता, धनी से धनी लोग भी कई मकानों में रहते हैं, केवल मंदिर ईट के बनते हैं, नाई कस्बे में आवाद नहीं .. होने पाते, और वेड़ियों के अतिरिक्त दूसरी कोई नर्तकियों की नाति उसमें रहने नहीं पाती । कुम्हारों के लिए भी मकान बनाकर रहने के विषय में प्रतिबंध है और तमाम घड़े और मिट्टी के वर्तन बाहर से आते हैं। ये नियम अब अवश्य ही इतने ढीले हो गए हैं कि केबल तुलसीदास के मकान के पास-पड़ोस तक सीमित माने जाते हैं। [तुलसीदास, तृ० सं०, पृष्ट १५८-९] इस अवतरण के संबंध में ध्यान देने की बात है कि उक्त डा० गुप्त की भाषा में- गजेटियर के दो संस्करण हमें प्राप्त है-एक सं० १९३६ में और दूसरा सं० १९६६ में प्रकाशित, और इन दोनों में राजापुर की उत्पचि का इतिहास देते हुए तत्संबंधी स्थानीय जन-श्रुतियों का उल्लेख किया गया है । अंतर इतना ही है कि सं० १९३१ वाले संस्करण की कुल बातों के अतिरिक कुछ और बातों का उल्लेख भी सं० १९६६ में प्रकाशित संस्करण में किया गया है। प्राचीनता के आधार पर दोनों अंगों को उद्धृत करते समय वह अंश नो सं० १९६६ में प्रकाशित संस्करण में बढ़ाया गया है वर्ग कोप्ठकों के अंदर रखा गया है और शेष जो सं० १९३१ का कोठकों बाहर रहने दिया गया है। [वही पृष्ठ, १५८] - है .