१०४ तुलसी को जीवन भूमि तात्पर्ण यह कि सं० १९३१ में यह बताने की आवश्यकता नहीं रही कि राजापुर के 'तुलसीदास' हैं कीन । हाँ, सं० १९६६ में इसकी आवश्यकता अवश्य था पढ़ी कि यह भी लिख कर प्रकट वा पुष्ट कर दिया जाय कि वस्तुतः यह तुलसीदास है कौन । फिर तो इशारे से काम नहीं चला । उसका कच्चा चिट्ठा भी सयके सामने आ गया। परंतु समझ में नहीं आता कि तत्कालीन माफीदार को कोसा क्यों गया है। सं० १९३१ में ही कवि-कीर्तन के लिए क्या किया जाता था ? अचरज की बात नहीं तो और क्या है ? क्या यह सच है कि- राजापुर में कुछ ऐसी विचित्र प्रथा प्रचलित है जो तुलसीदास के उपदेशों से निकली है? यदि हाँ, तो प्रमाण मिलना चाहिए न ? हमारी समझ में तो यह भी संकेत करता है कि वास्तव में राजापुर का तुलसीदास कोई शासक तुलसीदास है, ऐसी नीति उसी की चलाई हो सकती है, किसी भक्त तुलसीदास का इससे नाता क्या ? है कहीं अन्यत्र भी किसी कवि वा संत को चलाई हुई ऐसी प्रथा सघ कुछ 'तुलसीदास' के ही लिए संभव है ? था 2