पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/११८

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तुलसी की जन्मस्थान '१०७ घरम के सेतु "जग मंगल के हेतु भूमि- - भार हरिबे को अवतार लियो नर को । नीति और प्रतीतिप्रीति-पाल चालि प्रभुमान लोक वेद राखिवे को पन रघुबर को। बानर विभीपन की ओर के कनावड़े हैं, सो प्रसंग सुने अंग जरै अनुचर फो। राखे रीति आफ्नी जो होइ सोई कीजै बलि तुलसी तिहारो घर जायो है घर को ॥ [कवितावली, उत्तरकांड-१२३ ] 'अंग जरै अनुचर को' में जो खीझ है वही 'तुलसी तिहारो घर जायौ है घर को' को और भी सशक्त बनाती है और बताना चाहती है कि इस 'घर:जायौ है घर.कों का रहस्य भी कुछ और ही है। हाँ, स्मरण रहे, तुलसी लोक और वे दोनों की रक्षा को रघुवर का 'पण' बताते हैं, कुछ केवल वेद ही को नहीं, जिससे लौकिक संबंध की उपेक्षा को जाय । तुलसी को जो यहाँ. अभिमान होता है वह घर जाया लगाव का और भी घर का -'घर जाया' लगाव' का निश्चय ही तुलसीदास का घर कहीं अवध में ही था और वहीं या कहीं उनका जन्म-स्थान भी। [ तुलसीदास, पृष्ठ २३-४] प्रसन्नता की बात है कि इसके विपक्ष में डा० माताप्रसाद डा. गुप्त का तर्फ, गुप्त ने अपना मत प्रकट किया- पं० चंदवली पांडे कहते हैं, "निश्चय ही तुलसीदास का घर कहीं अवध में था, और वहीं था कहीं उनका जन्म स्थान भी । प्रश्न यहाँ पर यह है कि उधरण में आए हुए 'घर' शब्द की व्याति कितनी है क्या 'अवध' मात्र 'घर' शब्द की सीमा के अंतर्गत. आवेगा? इस प्रसंग में इसी प्रकार की एक उक्ति कबीर जी की भी उद्धृत की जा सकती है-