पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१२६

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तुलसी का जन्मस्थान ... राजापुर के इतिहास'का सिंहावलोकन करने से ज्ञात होता है कि इसने अपने कई नाम परिवर्तित किए हैं। यहाँ की उपलब्ध हस्तलिखित प्राचीन पुस्तकों की पुषिकाओं के आधार पर हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि राजापुर का प्राचीन नाम विक्रमपुर था और कालान्तर में रजियापुर अथवा राजापुर हुआ । इस मत की पुष्टि के लिए कुछ पुष्पि- काओं का उद्धरण देना नितान्त आवश्यक है। १) आभ्युदयिक श्राद्ध सं० १६९९ वि० सम्बत् १६९९ समय मार्गावदि पष्ठी बुधवासरे, विक्रमपुर शुभ- स्थाने लिपितं गोसाईराम द्विवेदिनामिदं पुस्तकम् ॥ शुभमस्तु । (२) पटीपूजाविधिः सं० १८१९ वि० महोंडायां शुचो देशे धनधान्य कमाकुले । विक्रमाख्य पुरे रम्ये, कालिद्याद दक्षिणे तटें || यादृशं पुस्तकं दृष्टा तादृशं लिप्यतं मया । यदि शुद्धमशुद्धम्बा, मम दोपो न दीयते ॥ २॥ लिप्यतं मया रामदुवेदेन आप पासार्थ हेतवे ॥ ३॥ .: 'मिती कार्तिक सुदि चतुर्दशी रवि वासरेक पुस्तक समाप्तम् । (३) संध्योपासन निधिः-सं० १८३० वि० सम्वत् १८३० शाके १८९४ समय' नाम भार्गवदी ३ भृगुसरेका लिप्यते । गहोरादेशान्तर्गत यमुनादक्षिणतटे विक्रमपुर-शुभस्थाने श्री महाराजाधिराज श्री राजाभजीतसिंह राज्ये, श्रीराजाहिन्दूपति भुज्यमाने, कालींजरगढ वर्तमाने पुस्तके लिपितं श्री दुवे गोवर्धनेनं लिपितं श्री दुबे दमरीराम पाठार्थम् ।..! ऋपि पंचमीवत कन्या-सं० १८३४ वि० सं०:१८३४ शाके १६९९ :कोलकनामः संवत्सरे दक्षिणायणे वर्षा- ऋतौ श्रावणमासे शुक्लपक्षे पष्ठी शनिवासरेका पुस्तकं समाप्तं । श्रीमद्वि- "