पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलसी :फी जीवन-भूमि घेदनाथ तस्यात्मन भैयाराम: तस्यात्मज संगमलाल तस्यास्मज भैयारा लिपितं. पुस्तकं शुभं भूयात् । उपरोक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि राजापुर का प्राचीन नाम विक्रम- पुर था, तथा वहाँ दूबे लोगों का ही वाहुल्य था और ये लोग पौरोहित्य कार्य ही करते थे क्योंकि यहाँ की सहस्रों हस्तलिखित कर्मकांड की पोथियाँ दुवों की ही लिखी हुई हैं । अतः राजापुर को 'दूवन का पुरवा तथा तुलसीदास जी के पिता पराशर गोत्रीय पत्यौजा दुवे पं० आत्मा- राम जी को:- सुकृती सत्पात्र सुधी मषिया । रनियापुर रानगुरू मुपिया मानना तनिक भी सन्देहास्पद नहीं है। [जनभारती, भाग १, पृष्ठ ४३-४४ ] संदेहास्पद नहीं है तो न हो। परंतु सच तो कहें कि बाबा राजापुर का उल्लेख वेनीमाधवदास' के समय में इसका नाम था क्या ? आप तो स्वयं लिखते हैं न ? अस्तु हमें सं० १८१३ वि० में सर्वप्रथम राजापुर मिलता है, परंतु इस नाम का प्रचार: कम था जैसा कि ऊपर उद्धृत पुष्पिकाओं से स्पष्ट है । परंतु राजापुर ही पूर्णरूपेण फब से प्रचारित हुआ, इस विषय में अभी अनुसंधान हो रहा है। [वही, पृष्ठ ४६ ] नम्र निवेदन है कि कृपया यह स्पष्ट करने का कष्ट करें कि गोसाई राम प्रथम पुष्पिका में जो लिपितंगोसांई राम द्विवेदिनामिदं पुस्तकम् । आया है उसका संकेत क्या है। नाम गोसांईराम' है अथव है गोसांई राम' द्विवेदी ? तात्पर्य यह कि गोसांई तुलसीदास के प्रसंग में यह 'गोसांई शब्द बड़े महत्त्व का है। ऐसी धृष्टता का